पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/६८

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प्रेम-पूर्णिमा भोरको मुन्शीजी बाहर निकले और मूंगासे बोले- यहाँ क्यों पड़ी है ? मूंगा बोली-तेरा लहू पीऊँगी। नागिनने बल खाकर कहा-तेरा मुंह झुलस दूंगी। पर नागिनके विषने गापर कुछ असर न किया। उसने जोरसे ठहाका लगाया, नागिन खिसियानीसी हो गयी। इसीके सामने मुँह बन्द हो जाता है। मुन्शीजी फिर बोले---यहासे उठ जा। 'न उलूंगी। 'कबतक पड़ी रहेगी? 'तेरा लहू पीकर जाऊंगी। मुन्शीजीका प्रखर लेखनीका यहाँ कुछ जोर न चला और नागिनकी आगमरी बाते यहाँ सर्द हो गयीं। दोनों घरमें जाकर सलाह करने लगे, यह बला कैसे टलेगी। इस आपत्तिसे कैसे छुटकारा होगा। देवी आती है तो बकरेका खून पीकर चली जाती है, पर यह डाइन मनुष्यका खून पीने आयी है। वह खून, जिसकी अगर एक बून्द भी कलम बनाने के समय निकल पड़ती थी, तो अवारों और महीनों सारे कुनबेके अफसोस रहता और यह घटना गॉवमे घर-घर फैल जाती थी। क्या यही लहू पीकर मुंगाका सूखा शरीर हरा हो जायगा ? गॉवमे यह चर्चा फैल गयी, मूंगा मुन्धीजीके दरवाजेपर धरना दिये बैठी है। मुन्शीजीके अपमानमें गॉववालोंको बड़ा मजा आता था। देखते-देखते सैकडों आदमियोंकी भीड़ लग गयी। इस