पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/६७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गरीबकी हाय मुन्शीजी यह भयावना ठहाका सुनकर चौंक पड़े। हरके मारे पैर थर थर कॉपने लगे। कलेजा धक-धक करने लगा। दिलपर बहुत जोर डालकर उन्होंने दरवाजा खोला, जाकर नागिनको जगाया। नागिनने हुँझलाकर कहा-क्या है, क्या कहते हो? मुन्शौजीने दबी आवाजसे कहा-वह दरवाजेपर खड़ी है। नागिन उठ बैठी-क्या कहती है ? 'तुम्हारा सिर 'क्या दरवाजेपर आ गयी?" 'हॉ, आवाज नहीं सुनती हो।' नागिन मूंगासे नहीं, परन्तु उसके ध्यानसे बहुत डरती थी, तो भी उसे विश्वास था कि मै बोलने में उसे जरूर नीचा दिखा सकती हूँ। सँभलकर बोली-'कहो तो मैं उससे दो-दो बातें कर लू। परन्तु मुन्शीजीने मना किया। दोनों आदमी पैर दबाये ड्योढ़ीमें गये और दरवाजेसे झॉक कर देखा, मूंगाकी धुंधली मूरत धरतीपर पड़ी थी और उसकी सॉस तेजीसे चलती हुई सुनाई देती थी। रामसेवकके लहू और मासकी भूख में वह अपना लहू और मास सुखा चुकी थी। एक बच्चा भी उसे गिरा सकता था। परन्तु उससे पारा गॉव यर-थर कॉपता । छम जीते मनुष्यसे नहीं डरते. पर मुर्दैसे डरते हैं।राव गुजरी । दरवाजा बन्द था, पर मुन्शीजी और नागिनने बैठकर रात काटी । मूंगा भीतर नहीं घुस सकती थी, पर उसकी आवाजको कौन रोक सकता या, मूंगासे अधिक डरावनी उसकी आवाज थी।