पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/९८

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बेटीका धन झगडने बड़ी धार्मिकताके साथ स्थिर होकर कहा-शास्त्र में बेटीके गाँवका पेड़ देखना मना है। चौधरीले दीर्घ निश्वास छोड़कर करुण स्वरमें कहा-न बाने नारायण कब मौत देंगे । भाईजी! तीन लड़कियाँ न्याहीं। कभी भूलकर भी उनके द्वारका मुँह नहीं देखा । परमात्माने अबतक तो टेक निबाही है, पर अब न जाने मिट्टीकी क्या दुर्दशा होनेवाली है। सगड़, साहू 'लेखा जो जौ, बखशीश सौ सौ के सिद्धान्त पर चलते थे। सूदकी एक कौड़ी भी छोड़ना उनके लिये हराम था। यदि महीनेका एक दिन भी लग जाता तो पूरे महीनेका सूद वसूल कर लेते। परन्तु नवरात्र में नित्य दुर्गापाठ करवाते थे। पितृपक्षमें रोज ब्राह्मणोंको सीधा बॉटते थे। बनियोंकी धर्ममें बढी निष्ठा होती है। झमड़ साहुके द्वारपर सालमें एक बार भागवत पाठ अवश्य होता । यदि कोई दीन ब्राह्मण लड़की च्याइनेके लिये उनके सामने हाथ पसारता तो वह खाली हाथ न लौटता, भीख मांगनेवाले ब्राह्मणोंको चाहे वह कितने ही सण्डे मुसण्डे हो, उनके दरवाजेपर फटकार नही सुननी पड़ती थी। उनके धर्मशास्त्रमें कन्याके गाँवके कुएँ का पानी पीनेसे प्यासा मर जाना अच्छा था। वह स्वयं इस सिद्धन्तके भक्त थे और इस सिद्धान्तके अन्य पक्षपाती उनके लिये महामान्य देवता थे। वे पिघल गये, मनमें सोचा, यह मनुष्य तो कभी ओछे विचारों- को मनमें नहीं लाया। निर्दय कालकी ठोकरसे अधर्म मार्गपर उतर आया है तो उसके धर्मकी रक्षा करना हमारा कर्तव्यधर्म है। यह विचार मनमें आते ही झगड़, साहु गद्दीसे मसनदके