पृष्ठ:प्रेम पूर्णिमा.pdf/९७

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प्रम पूर्णिमा बाये हुए। इस दुर्दिनके समय यदि दो दो थान उतार देती तो क्या मैं छुड़ा न देता ? सदा यही दिन थोड़े ही रहेंगे। झगड़, समझ गये कि यह महज जबानका सौदा है और वह जबानका सौदा भूलकर भी न करते थे । बोले-तुम्हारे घरके लोग भी अनूठे हैं। क्या इतना भी नहीं जानते कि बूढा रुपये कहासे लावेगा? अब समय बदल गया । या तो कुछ जायदाद लिखो या गहने गिरो रक्खो, तब जाकर कहीं रुपया मिले। इसके बिना रुपये कहाँ। इसमें भी जायदादमे सैकड़ों बखेड़े पड़े हैं। सुभीता गिरों रखनेमें ही है। हाँ, तो जब घरवालोंको कोई इसकी फिक्र नही तो तुम क्यों व्यर्थ जान देते हो। यही न होगा कि लोग हँसेंगे । यह लाज कहाँतक निबाहोगे? "चौधरीने अत्यन्त विनीत होकर कहा-साहुजी यही लाज लो मारे डालती है। तुमसे क्या छिपा है ?-एक वह दिन था कि इभारे दादा बाबा महाराजकी सवारीके साथ चलते थे और अब एक दिन यह है कि घरकी दीवारतक बिकनेकी नौबत आ गयी है। कहीं मुंह दिखानेको भी जी नहीं चाहता। यह लो गहनोंकी पोदली। यदि लोकलाज न होती तो इसे लेकर कभी यहाँ न आता। परन्तु यह अधर्म इसी लाज निबाहनेके कारण करना शगड साहुने आश्चर्यमें होकर पूछा-यह गहने किसके हैं। चौधरीने सिर झुकाकर बड़ी कठिनतासे कहा--मेरी बेटी- सगड साहु स्तम्भित हो गये। बोले-अरे । राम राम । चौधरीने कातर स्वरमे कहा-डूब मरनेको जी चाहता । . 4