साम्राज्य स्थापित किये हैं-संसारके बड़े बड़े खलीफाओं और बादशाहोंमेंसे जितनोंने अपने साम्राज्य स्थापित और रक्षित किये हैं, उन सबका बल और इस भूखी छिपकलीका बल एक ही बल--अर्थात् बाहुबल है । सुल्तान महमूद सोमनाथका मन्दिर लूट कर ले गया और यह काले मुंहकी बिल्ली मूसा पकड़कर भाग गई; दोनों ही वीर हैं, दोनोंके बाहुबल है। सोमनाथके मन्दिर और मेरे कपड़े काटनेवाले मूसेमें बहुत अन्तर है, यह बात मैं स्वीकार करता हूँ। किन्तु महमूदके लाखों सिपाहियों और अकेली बिल्लीमें भी बड़ा अन्तर है। संख्या और शरीर में अन्तर होनेपर भी दोनोंके पराक्रममें बहुत अधिक अन्तर नहीं देख पड़ता। सागर भी जल है, और ओसका बूंद भी जल है। महमूदका वह पराक्रम और छिपकली या बिल्लीका पराक्रम एक ही है। दोनों कार्य बाहुबलके पराक्रम हैं। पृथ्वीके वीरपुरुष धन्य हैं और उनके गुणोंका कीर्तन करनेवाले 'हिराडोट्स' से 'के' और 'किंगलेक' साहब तक धन्य हैं।
यहाँपर कोई महाशय कह सकते हैं कि केवल बाहुबलसे कभी कोई साम्राज्य नहीं स्थापित हुआ । केवल बाहके बलसे पानीपत या सेडन नहीं जीता गया—केवल बाहुके बलसे नेपोलियन या मार्लबरो वीर नहीं हुए। हम स्वीकार करते हैं कि कुछ कौशल—अर्थात् बुद्धिबल—बाहुबलके साथ संयुक्त हुए बिना कार्यकारिता नहीं होती। किन्तु कौशल भी केवल मनुष्य वीरका ही कार्य नहीं है । क्या आप यह समझते हैं कि छिपकली मक्खीको या बिल्ली मूसेको बिना कौशलके पकड़ती है ? बुद्धिबलके संयोगके बिना बाहु- बलकी स्फूर्ति नहीं होती,—बुद्धिबलके बिना जीवके किसी भी बलकी स्फूर्ति नहीं होती।
अतएव यह स्वीकार करना पड़ता है कि जिस बलसे पशु और मनुष्य दोनों प्रधानतः स्वार्थसाधन करते हैं, वही बाहुबल है। असलमें उसे पशुबल कहना चाहिए, किन्तु उसमें सब प्रकारके कार्यकी क्षमता है और निष्पत्तिका वही अन्तिम उपाय है। जिसकी निष्पत्ति और किसी तरह नहीं होती, उसकी निष्पत्ति बाहुबलसे होती है। ऐसी कोई गाँठ नहीं जो छुरीसे न कटे, ऐसा कोई पत्थर नहीं जो चोटसे न टूटे।बाहुबल इस संसारकी ऊँची
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