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पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/१२२

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प्यारका अत्याचार।
 

हमारा अनिष्ट है उससे निवृत्त होनकी हमें सलाह देनेका मनुष्यमात्रको अधिकार है। राजा भी सलाह दे सकता है। किन्तु सलाहके सिवा हमें हमारी मर्जी के खिलाफ चलनेके लिए लाचार करनेका अधिकार किसीको नहीं है । समाजके सब लोगोंको अधिकार है कि वे दूसरेका अनिष्ट न करके हरएक कार्यको अपनी अपनी प्रवृत्तिके अनुसार संपादित करें। दूसरेका अनिष्ट करनेसे यह स्वेच्छाचार कहलायेगा और दूसरेका अनिष्ट न होनेसे इसे स्वानुवर्तिता कहेंगे। जो इस स्वानुवर्तितामें विघ्न डालता है, जो किसीका अनिष्ट न होनेके स्थानमें भी हमारे मतके विरुद्ध अपने मतको प्रबल करके उसके अनुसार कार्य करता है वही अत्याचारी है। राजा, समाज, और प्रणयी, ये तीन जन इस तरहका अत्याचार किया करते हैं।

राजाके अत्याचारको रोकनेका उपाय बहुत दिन पहले निकाला जा चुका है। समाजके इस अत्याचारको रोकनेके लिए पूर्वकालके कुछ पण्डितोंने अस्त्रधारण किया था। इस विषयमें जान स्टुअर्ट मिलका यत्न और विचारनिपुणता उनके माहात्म्यका परिचय देगी। किन्तु प्यारका अत्याचार रोकनेके लिए कभी किसीके यत्न करनेकी बात आजतक देखी सुनी नहीं गई। कवि लोग सर्वतत्त्वदर्शी और अनन्तज्ञानशाली होते हैं। वे कुछ नहीं छोड़ते। कैकेयीके अत्याचारसे दशरथकृत राम-वनवास, द्यूतमें आसक्त युधिष्ठिरके किये भाइयोंके निर्वासन और अन्यान्य सैकड़ों स्थानोंमें कविगण इस महती नीतिका प्रतिपादन कर गये हैं। किन्तु कवि-लोग नीतिवेत्ता नहीं होते और नीतिज्ञ लोगोंने प्रकाश्यरूपसे इस विषयमें कभी हस्तक्षेप नहीं किया है। जो कोई मन लगा कर लौकिक व्यापारोंपर दृष्टि डालेगा, वह इस तत्त्वकी समालोचनाके विशेष प्रयोज-नीय होनेमें कोई संशय नहीं रख सकता। क्यों कि इस अत्याचारके करनेवाले अत्याचारी अनेक हैं। पिता-माता, भाई-बहन, स्त्री-स्वामी, पुत्र-कन्या, आत्मीय-कुटुम्ब, सुहृद्-भृत्य, जो कोई प्यार करता है, वही कुछ न कुछ अत्याचार और अनिष्ट करता है । तुम यह इच्छा किये बैठे हो कि अच्छे लक्षणोंवाली, अच्छे कुलकी, अच्छे चरित्रकी कन्या देख कर उसके साथ ब्याह करेंगे। इसी बीचमें तुम्हारे बापने तुमसे बिना पूछे ही

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