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पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/१२३

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बंकिम-निबन्धावली—
 

किसी लड़कीके साथ तुम्हारे ब्याहकी बात पक्की कर ली। तुम यदि बालिग हो, तो इस विषयमें पिताकी आज्ञा माननेके लिए बाध्य नहीं हो। किन्तु पितृप्रेमके वशीभूत होकर तुमको वही ब्याह करना पड़ा। मान लो, कोई गरीब है । दैवके अनुग्रहसे उसे कोई अच्छी जगह मिल गई और वह दूर देश जाकर गरीबीसे पीछा छुड़ानेका उद्योग कर रहा है। इसी बीचमें माताने रोना धोना मचा दिया। उसे अपनेसे दूर जानेके लिए मना किया। वह मातृप्रेमसे लाचार होकर रह गया। मातृप्रेमके अत्याचारसे उसने अप- नेको सदाके लिए गरीबीके गढ़ेमें डाल दिया। लायक भाईके कमाये रुप- येको निकम्मे नालायक भाई नष्ट करते हैं। यह बिल्कुल ही प्यारका अत्या- चार है। यह हिन्दू-समाजमें प्रत्यक्ष देख पड़ता है। भार्याके प्यारके अत्या- चारका उदाहरण उद्धृत करनेकी कोई आवश्यकता ही नहीं जान पड़ती; और स्वामीके अत्याचारके सम्बन्धमें धर्मसे इतना कह देना कर्त्तव्य है कि उनमेंसे कुछ प्यारके अत्याचार भी होते हैं, किन्तु अधिकांश अत्याचारोंका सम्बन्ध बाहुबलसे ही होता है ।

मनुष्य-जीवन प्यारके अत्याचारोंसे पूर्ण है। मनुष्य सदासे अत्याचार-पीड़ित है। प्रथमावस्थामें बाहुबलका अत्याचार था। असभ्य जातियोंमें जो बली था, वही पर-पीड़न करता था। कुछ समय बाद यह अत्याचार राजाके अत्याचार और धनके अत्याचारके रूपमें परिणत हो गया। यह अत्याचार किसी समाजसे बिल्कुल कभी नहीं उठाया जा सका। द्वितीय अव-स्थामें धर्मका अत्याचार, जातीय अवस्था में सामाजिकताका अत्याचार और सभी अवस्थाओंमें प्यारका अत्याचार पाया जाता है। इन चार प्रकारके अत्याचारों में प्यारका अत्याचार किसी अत्याचारकी अपेक्षा हीनबल या कम अनिष्ट करनेवाला नहीं है। बल्कि यह कहा जा सकता है कि राजा, समाज, या धर्मवेत्ता, कोई भी प्रणयीकी अपेक्षा बलवान् नहीं है। प्रणयीकी तरह कोई भी सदा सब घड़ी सब कामोंमें आकर हस्तक्षेप नहीं करता। इस कारण यह कहा जा सकता है कि प्यारका अत्याचार सबसे बढ़कर अनिष्ट-कारी है। अन्य अत्याचारोंको रोका जा सकता है—अन्य अत्याचारोंकी सीमा है। क्यों कि अन्यान्य अत्याचारियोंका विरोध करना सहज है।

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