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पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/१३९

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बंकिम-निबन्धावली—
 

पहले प्रकारसे बहुत दिन लगते हैं, और दूसरे प्रकारसे, बहुत शीघ्र कार्य सिद्ध हो जाता है।

(२) जब कोई अपेक्षाकृत असभ्य जाति अत्यन्त सभ्य जातिसे हिलने मिलनेका अवसर पाती है तब वह सभ्यताकी राहपर बड़ी तेजीसे दौड़नेकी कोशिश करती है, और प्रतिभा होनेसे अपनी चेष्टामें सफलता भी प्राप्त करती है। ऐसी जगहपर सामाजिक गति ऐसी होती है कि अपेक्षाकृत असभ्य अशिक्षित समाज अपनेसे अधिक सभ्य शिक्षित समाजका अनुकरण सब बातों में करने लगता है। यही स्वाभाविक नियम है।

(३) अतएव हिन्दुस्तानियोंके आधुनिक समाज में दिखाई देनेवाली वह अनुकरण-प्रवृत्ति न अस्वाभाविक है और न हिन्दुस्तानियोंके स्वाभाविक दोषसे उत्पन्न हुई है।

(४) अनुकरण-मात्रसे अनिष्ट नहीं होता। अगर अनुकरणमें कुछ दोष हैं तो उसमें गुण भी हैं। प्रतिभाहीन—विचित्रताहीन—का अन्ध अनुकरण दो कौड़ीका होता है । प्रतिभाशाली मनुष्य ( या जाति ) पहले अनुकरण करता है और पीछे अभ्यास हो जानेपर स्वतन्त्र रूपसे उसीमें उन्नति करता है। हमारे हिन्दुस्तानियोंकी जैसी अवस्था है, उसे देख कर यह बात निश्चित रूपसे नहीं कही जा सकती कि इनकी अनुकरण-प्रवृत्ति अच्छी नहीं। इस अनुकरणप्रवृत्तिमें आशाकी झलक भी पाई जाती है।

(५) परन्तु अन्ध-अनुकरणमें एक बड़ा भारी दोष भी है। वह यह कि अनुकरणयोग्य प्रथम अवस्था निकल जाने पर भी अगर अनुकरणकी प्रवृत्ति प्रबल बनी रही; अथवा अनुकरणके योग्य समयमें ही बराबर अनु- करणकी प्रवृत्ति जोर पकड़ती गई, अर्थात् अनुकरणका अभ्यास बढ़ता गया, तो बहुत ही शीघ्र सर्वनाश उपस्थित होता है।

(६) अनुकरण करनेवाले हिन्दुस्तानी अगर इन बातोंपर ध्यान देकर सँभल कर काम करें, तो वे शीघ्र ही अपने गुरुओंके उत्तम शिष्य बनकर सम्मान प्राप्त कर सकते हैं।

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