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पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/१६०

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रामधन पोद।
 

इन्हीं सब बातोंपर सोच विचार कर बहुत लोग कहते हैं कि जब तक बंगाली साधारणतः मांसाहार न करेंगे, तबतक उनके बाहुबल न होगा। हम यह बात नहीं कहते। मांसका प्रयोजन नहीं है। दूध, घी, आटा, मैदा, दाल, चने, अच्छी साग-सब्जी, यही उत्तम आहार है। इसका दृष्टान्त युक्त प्रान्तके आदमी हैं। वे लोग पेट भरकर बलकारक आहार रोटी और उसके साथ थोडासा भात खाते हैं। बंगाली भी अगर भातकी मात्रा घटाकर रोटी आदि सामग्रीकी मात्रा बढ़ा दें, तो एक पीढ़ीमें निरोग और तीन पीढ़ियोंमें बलिष्ठ शरीरवाले हो सकते हैं।

मैं ये सब बातें रामधन पोदको समझा रहा था । रामधन पोदका सारा परि- वार रोगी रहता था। रामधन पोदने हाथ जोड़कर कहा—" आपने सब ठीक कहा—मगर दूध, घी, आटा ? भैया, ये सब चीजें हमको कहाँ नसीब ? ऐसा जमाना लग गया है कि खाली पेटभर भातका खर्च उठाये नहीं उठता।"

मैंने सोचकर देखा, बात सच है। मैं रामधन पोदके यहाँ धान कूटनेकी जो ढेंकी थी उसके काठपर बैठा हुआ था। दहलानमें एक बड़ा कुत्ता लेटा हुआ था, इससे मैं और आगे नहीं बढ़ सका। वहींसे मैं रामधन पोदकी वंशावलीका परिचय पा रहा था। रामधनने एक एक करके दिखलाया कि उसके चार लड़के, पाँच लड़कियाँ हैं। एक लड़के और तीन लड़कियोंका ब्याह करना बाकी है। नीच जातिके यहाँ लड़का ब्याहने में भी खर्च होता है और लड़की ब्याहनेमें भी। लेकिन लड़की ब्याहनेमें कम खर्च होता है। उसने कहा—" एक लड़केका ब्याह करनेका तो ठिकाना है नहीं, आप दूध, 'घी, आटेकी बात चला रहे हैं !” मैंने अपने मनमें कहा—बेशक, मेरी यह बात असंगत ही हुई है। जान पड़ा, जैसे वह जमीनपर लेटा हुआ कुत्ता भी मुझपर खफा होकर तर्जन-गर्जन करनेका उद्योग कर रहा है। जान पड़ा, जैसे वह कह रहा है कि मुझे मुट्ठीभर जूठा भात तो मिलता ही नहीं, और तुम बूट-जूते डाँटे इस ढेंकीके ऊपर बैठे घी-आटेका जिक्र चला रहे हो! एक रोम- शून्य बिल्ली मेरी ओरसे फिरकर दुम उठाये उधरहीसे चली गई। रामधनके उस नीरस घरमें घी, दूध, मक्खनकी बात सुनकर वह निस्सन्देह मेरा उप- हास करके चली गई !

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