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पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/१६४

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मेघ ।
 

लडकेका भी सर्वनाश समझते हैं और अपना भी सर्वनाश समझते हैं । लड़का होनेसे उसका ब्याह करना ही होगा, हरएक मनुष्यको ब्याह करना ही चाहिए और लड़केका बचपनमें ब्याह कर देना भी प्रधान कार्य है, ऐसा भयानक भ्रम जिस देशमें सर्वव्यापी है उस देशकी भलाई कहाँसे हो सकती है ? जिस देशमें मा-बाप लड़केके तैरना सीखनेके पहले ही स्त्री-रूप पत्थर उसके गलेमें बाँधकर दुस्तर संसार-सागरमें डाल देते हैं, उस देशकी उन्नति कैसे हो सकती है ?

मेघ ।

मैऺन बरतूंगा। क्यों बरसू ? बरसनेसे मुझे क्या सुख है ? बरसनेसे तुम्हें सुख है। लेकिन तुम्हारे सुखसे मुझे क्या प्रयोजन ?

देखो, मेरे क्या यन्त्रणा नहीं है ? इस दारुण बिजलीकी आगको मैं सदा हृदयमें धारण करता हूँ। मेरे हृदयमें इस सुहासिनी सौदामिनीका उदय देखकर तुम प्रसन्न होते हो, तुम्हारी आँखें ठंडी होती हैं, मगर इस बिज- लीके स्पर्शसे ही तुम जल जाते हो। इसी आगको मैं हृदयमें रखता हूँ। मेरे सिवा किसकी मजाल है कि इस आगको हृदयमें रक्खे ?

देखो, वायु सदा मुझको अस्थिर किये रहता है। वायुको दिशा-विदि- शाका ज्ञान नहीं है। वह सब ओरसे चलता है। जब मैं जलके बोझसे भारी रहता हूँ, तब वायु मुझे उड़ा नहीं सकता।

तुम डरना नहीं, मैं अभी बरसता हूँ, पृथ्वी अम्नसे हरी भरी हो उठेगी। मुझे पूजा चढ़ाना।

मेरा गरजना अत्यन्त भयानक है। तुम इससे डरना नहीं। जब मैं मन्द गम्भीर शब्दसे भर जाता हूँ, वृक्षोंके पत्तोंको हिलाकर, मोरोंको नचाकर, मृदुगंभीर गर्जना करता हूँ, तब इन्द्र के हृदयमें पड़ी हुई कल्पवृक्षके फूलोंकी माला हिल उठती है, कृष्णचन्द्र के सिरपरका मोर-मुकुट डोलने लगता है, पर्वतोंकी कन्दराओंसे प्रतिध्वनि होने लगती है । और भैया, वृत्रासुरके

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