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पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/१७६

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पुष्प-नाटक।
 

जूही—हाय, कहाँ गये तुम अमल, स्वच्छ, सुन्दर सूर्यकी प्रतिभासे भासित, रसमय जलकण ! इस हृदयको स्नेहसे भरकर फिर क्यों शून्य कर दिया जलकण ? एकबार रूप दिखाकर, स्निग्ध करके, कहाँ लीन हो गये प्राणनाथ ? हाय, मैं तुम्हारे संग क्यों नहीं गई—तुम्हारे साथ क्यों नहीं मर गई ? क्यों अनाथ, अ-स्निग्ध पुष्प-देह लेकर इस शून्य प्रदेशमें बनी रही!

वायु—ले रोना रहने दे—परिमल दे—

जूही—छोड़ो, नहीं तो जहाँ मेरा प्यारा गया है वहीं मैं भी जाऊँगी ।

वायु—जा, जायगी, परिमल दे । हूँ हुम !

जूही—मैं मरूँगी मरती हूँ।-अच्छा जाती हूँ।

वायु—हुँ हुम !

( जूहीके फूलका पृथ्वीपर गिरना ।)
 

वायु—हुँः ! हाय ! हाय !

[ यवनिका पतन। ]
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Epilogue.

१ श्रोता—नाटककार महाशय, यह क्या खाक-पत्थर हुआ?

२ श्रोता—ठीक तो है, एक जूहीका फूल नायिका और एक बूंद जल नायक ! बड़ा भारी Drama ड्रामा है !

३ श्रोता—हो सकता है कि इसमें कोई moral मॉरल हो। नीतिकी कोई बात जान पड़ती है।

४ श्रोता—नहीं जी, यह एक तरहकी Tragedy ट्रेजिडी है।

५ श्रोता—Tragedy ट्रेजिडी है या एक Farce फार्स है ?

६ श्रोता—Farce फार्स है या किसीको लक्ष्य करके उपहास किया गया

७ श्रोता—यह नहीं है। इसका अर्थ गूढ़ है । मुझे यह परमार्थ-विषयक काव्य जान पड़ता है। 'वासना' या ' तृष्णा ' इसका नाम रक्खा जा सकता था। जान पड़ता है, ग्रन्थकार उतना खुलना नहीं चाहते ।

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