न करता हो । यह 'वेदभक्ति' भारतवर्षकी बड़ी ही विस्मयकारिणी चीज है इस विषयको हम कुछ विस्तारके साथ लिखना चाहते हैं।
मनुजी कहते हैं—वेद शब्दसे सबके नाम, कर्म, और अवस्थाएँ निर्मित हुई थीं। वेद पितृ, देवता और मनुष्योंका चक्षु है । जो वेदसे भिन्न है, वह परकालमें निष्फल है। वेदको छोड़कर और सब ग्रन्थ मिथ्या हैं । भूत भविष्यत् वर्तमान, शब्द स्पर्श रूप गन्ध, चतुर्वर्ण, तीन लोक, चतुराश्रम आदि सब ही वेदसे प्रकाश हुए हैं । वेद मनुष्योंका परम साधन है । जो वेदज्ञ है, वही सेनापतित्व, राज्यशासकत्व और सर्वलोकाधिपत्यके योग्य है। जो वेदज्ञ है वह चाहे जिस आश्रममें रहे, सदा ब्रह्ममें लीन होने योग्य है। धर्मजिज्ञासुओंके लिए वेद ही परम प्रमाण है । वेद अज्ञोंके लिए और अज्ञानि- योंके लिए भी शरण है। जो स्वर्ग या आनन्त्यकी कामना करते हैं, उनके लिए यही शरण है। जो ब्राह्मण तीन लोककी हत्या करनेवाला और जहाँ तहाँ खानेवाला है, उसे यदि ऋग्वेद याद है, तो फिर उसे कोई पाप नहीं लग सकता! शथपथ ब्राह्मणमें कहा है कि वेदान्तर्गत सर्वभूत हैं । सकल छन्दः, स्तोम, प्राण और देवताओंका आत्मा वेद है। वेद ही है। वेद अमृत है। जो सत्य है, वही वेद है। विष्णुपुराणमें कहा है कि देवादिके रूप, नाम, कर्म, प्रवर्तन, वेद शब्दसे ही सृष्ट हुए थे। इसी पुराणमें एक और जगह विष्णुको वेदमय ऋग्- यजुः-सामात्मक कहा है। महाभारतके शान्तिपर्वमें कहा है—वेद शब्दसे सर्व भूतोंके रूपनामकर्मादिकी उत्पत्ति हुई है। ऋक्संहिता और तैत्तिरीय संहिताके मंगलाचरणमें सायनाचार्य और माधवाचार्यने लिखा है—वेदसे अखिल जगत्का निर्माण हुआ है।
इस तरह सर्वत्र ही वेदका माहात्म्य बतलाया है। किसी देशमें, किसी भी धर्मग्रन्थकी—बाइबल कुरान आदिकी—ऐसी महिमा नहीं गाई गई।
अब प्रश्न यह है कि जो वेद इस तरह सबका पूर्वगामी और उत्पत्तिका मूल है, वह आया कहाँसे ? इस विषयमें जुदा जुदा लोगोंके जुदा जुदा मत हैं। कोई कोई कहते हैं कि वेदका कर्ता कोई भी नहीं है—यह किसीका भी बनाया हुआ नहीं है। यह नित्य और अपौरुषेय है। दूसरे कहते हैं कि यह ईश्वरप्रणीत है, इस लिए सृष्ट और पौरुषेय है । हिन्दूशास्त्रोंकी यह कैसी
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