इस ग्रन्थके पाठसे बंकिम बाबूकी हास्यरसमयी अमृतनिस्यन्दनी लेखनीका परिचय मिलेगा। इसमें 'चिदानंद चौबे' नामक विद्वान् भंगभक्तके सब मिलाकर २० लेख और पत्र हैं। इनमें हँसी-दिल्लगी और मनोरंजनके साथ साथ ऊँचेसे ऊंचे विषयोंकी शिक्षा दी गई है। चौबेजी देशकी वर्तमान सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक बातोंकी बड़ी ही चुभती और मर्मस्पर्शिनी समालो. चना करते हैं। पुराने और नये दोनों प्रकारके शिक्षितोंको उनके बर्तावोंके विषयमें गहरी चुटकियाँ लेकर सचेत करते हैं, लेखकों, सम्पादकों, देशभक्तों, अँगरेज़ी सभ्यों और धर्मात्माओंको ऐसी बातें सुनातें हैं कि सुनकर दंग हो जाना पड़ता है। इसे पढ़ते पढ़ते कभी तो आप रोने लगेंगे, उसासें लेने लगेंगे और कभी पेट पकड़कर हँसेंगे। विनोद और विवेकका इसमें विलक्षण संयोग हैं; रचना काव्यके संपूर्ण गुणोंसे पूर्ण है। हिन्दीकी सुप्रसिद्ध पत्रिका सरस्वती लिखती है—" बंकिमबाबूने बड़ा खूबीसे इसमें सामाजिक बुराइयाँ दिखाई हैं।.........हास्यरसका विलक्षण मिश्रण है।.........पुस्तक बड़ी मनोरंजक और साथ ही शिक्षादायक भी है।" सुकवि बाबू मैथिलीशरण गुप्त लिखते हैं—"चौबेका चिट्ठा जैसा शिक्षादायक वैसा उपयोगी भी है।... ......इसकी शिक्षायें अप्रत्यक्ष होकर भी बड़ी मर्मस्पर्शिनी हैं और यही इसकी महत्ता है।" चौथा संस्करण हो रहा है। मूल्य १)
नोट—हमारी ग्रन्थमालामें अब उत्तमोत्तम ६६ ग्रन्थ निकल चुके हैं । एक कार्ड लिखकर सूचीपत्र मँगा लीजिए।