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पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/२८

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अष्टमीकी भीख ।
 

और महाजनके रूपमें किस तरह महाजनी करते हैं। वैसे ही ईश्वरकी उपासनामें ईश्वरके सृष्टि-स्थिति-प्रलय कार्योंको अलग अलग समझना पड़ता है। इसीसे हमारे यहाँ त्रिदेवकी उपासना प्रचलित है। अलग अलग कार्यके अनुसार एकहीके अलग अलग तीन नाम रख लिये गये हैं। तीनों नाम अलग अलग तीन आदमियोंके नहीं हैं।

मैं—यह तो मैं समझ गया, लेकिन गड़बड़ी फिर भी नहीं मिटी। वर्षा हुई और उससे अन्न पैदा हुआ, उसे खाकर सब जिये। तो बचाया किसने ? पालनकर्ता विष्णुने या बरसानेवाले इन्द्रने ?

बाबाजी—जो मैं कह चुका हूँ उसे अगर तुम समझ गये हो तो तुमको यह बतलानेकी कोई जरूरत नहीं है कि इन्द्र, वायु, वरुण आदि कोई जुदा देवता नहीं हैं। जो सृष्टि करता है, वही जैसे पालन करता है वैसे ही संहार भी करता है। वे ही जलानेवाले अग्नि, बरसानेवाले इन्द्र, आँधी चलानेवाले पवन और प्रकाश करनेवाले सूर्य हैं। जो ब्रह्मा, विष्णु, महे- श्वर हैं, वे ही इन्द्र, वे ही अग्नि और वे ही सब देवता हैं। किन्तु जैसे हम लोग समझनेकी सुगमताके लिए एक ही जलको कहीं नदी, कहीं समुद्र, कहीं झील, कहीं तालाब, कहीं गढ़ा और कहीं कुआ कहते हैं, वैसे ही उपासनाकी सुगमताके लिए एक ही परमेश्वरको कहीं इन्द्र, कहीं अग्नि, कहीं ब्रह्मा और कहीं विष्णु कहते हैं।

मैं—तो उनका यथार्थ नाम क्या है ?

बाबाजी—दो प्रकारसे उनकी उपासना होती है। जब उनको अव्यक्त, अचिन्त्य, निर्गुण और सब जगतका आधार मानकर उनकी उपासना करते हैं, तब उन्हें ब्रह्म, परब्रह्म या परमात्मा कहते हैं। और, जब उनको व्यक्त, उपास्य और इसी कारण चिन्तनीय, सगुण और सब जगतकी सृष्टि-स्थिति- संहारका कारण मानकर उनकी उपासना करते हैं, तब उन्हें बातचीतमें ईश्वर, वेदमें प्रजापति और पुराण-इतिहासोंमें विष्णु और शिव कहते हैं। जब एक साथ उनके दोनों रूपोंका ध्यान या उपासना कर सकते हैं— अर्थात् हमारे हृदयमें जब दोनों रूप भासित होने लगते हैं—तब उनको श्रीकृष्ण कहते हैं।

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