पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/२७

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बंकिम-निबन्धावली—
 

बाबाजी—विष्णुने पेट देकर मुझे ऐसी आज्ञा नहीं दी है कि रुद्राणी- के प्रसादसे उसे न भरूँ। किन्तु वह बात जाने दो, वास्तवमें रुद्राणी विष्णु- की ही शक्ति है।

मैं—यह क्या ? रुद्राणी तो रुद्रकी शक्ति है।

बाबाजी—विष्णु ही रुद्र है।

मैं—आपकी ये बातें मानने योग्य नहीं जान पड़तीं। ब्रह्मा, विष्णु, रुद्र, ये तीनों देवता अलग अलग हैं। एक सृष्टि, दूसरे पालन और तीसरे प्रलय करते हैं। फिर विष्णु रुद्र कैसे हो सकते हैं ?

बाबाजी—जिन रईसके घर बैठा हुआ मैं भोजन कर रहा हूँ वह क्या करते हैं, जानते हो?

मैं—जानता हूँ, जमींदारी करते हैं।

बाबाजी—और कुछ नहीं करते ?

मैं—कपड़ेकी दूकान भी करते हैं।

बाबाजी—और भी कुछ करते हैं ?

मैं—रुपया देकर ब्याज खाते हैं।

बाबाजी—अच्छा । अगर मैं बाहर जाकर किसीसे कहूँ कि मैं जमींदारके यहाँ भोजनकर आया हूँ, किसीसे कहूँ कि मैं एक कपड़ेके सौदागरके यहाँ खा आया हूँ, और किसीसे कहूँ कि मैं एक महाजनके घरमें अपना पेट भर आया हूँ, तो वह तीन आदमियोंके सम्बन्धकी बात होगी या एक आदमीकी ?

मैं—एक ही आदमीकी । क्योंकि एक ही आदमी तीनों पेशे करने- वाला है।

बाबाजी—वैसे ही ब्रह्मा-विष्णु-महेश्वर तीनों एक हैं। एक ही ईश्वर सृष्टि, पालन और संहार करता है। हिन्दूधर्ममें एक ईश्वरके सिवा तीन ईश्वर कभी नहीं हो सकते।

मैं—तो फिर तीनों रूपोंकी अलग अलग उपासना क्यों की जाती है ?

बाबाजी—तुम अगर इन रईसको विशेष रूपसे जानना चाहो तो तुम्हें इनके सब कामोंको अलग अलग समझना पड़ेगा। ये जमींदारके रूपमें किस तरह जमींदारी करते हैं, सौदागरके रूपमें किस तरह सौदागरी करते हैं,

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