पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/४४

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मनुष्यत्व क्या है ?
 

ही नहीं पैदा हुआ था। ऐसा होता तो तुरतका पैदा हुआ बच्चा भी संस्कार- विशिष्ट होता । किन्तु उस समय भी उन संस्कारोंका बीज मेरे शरीरमें (मन शरीरके अन्तर्गत है ) था, प्रयोजनके समय वही ज्ञानके रूपमें परिणत हो गया। इस प्रकार कोम्टके मतमें जो आभ्यन्तरिक या सहज ज्ञान है, वही स्पेन्सरके मतमें पूर्वपुरुषपरम्परागत प्रत्यक्षजात ज्ञान है। यह बात इस समय अप्रामाणिक जान पड़ सकती है, किन्तु स्पेन्सरने ऐसी दक्षताके साथ इसका समर्थन किया है कि इस समय यूरोपमें यही मत प्रचलित है।*

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मनुष्यत्व क्या है ?

नुष्य इस बातको अभीतक नहीं समझ सका कि मनुष्यजन्म लेकर क्या करना होगा ? अनेक लोग ऐसे हैं जो जगतमें धर्मात्मा कहकर अपना परिचय देते हैं। वे मुखसे कहा करते हैं कि परकालके लिए पुण्यसञ्चय ही मनुष्यके इस जन्मका उद्देश्य है। किन्तु अधिकांश लोग, चाहे मुँहसे भले ही यह बात कहते हों, पर उनके कार्य इसके अनुसार नहीं होते। बहुत लोग तो परकालके अस्तित्वको ही स्वीकार नहीं करते। यद्यपि पर- कालका विषय सर्ववादिसम्मत है और इस बातको सब लोग स्वीकार करते हैं कि परकालके लिए पुण्यसञ्चय ही इस जन्मका उद्देश्य है, तथापि इस विषयमें विशेष मतभेद है कि पुण्य क्या है ? केवल बंगदेशमें ही एक संप्रदायके मतसे मद्यपानसे परलोक बिगड़ता है, और दूसरे संप्रदायके मतसे मद्यपान परलोकके वास्ते परम कार्य है। तथापि दोनों संप्रदायके लोग बंगाली और हिन्दू हैं। यदि सचमुच परकालके लिए पुण्यसञ्चय ही मनुष्य जन्मका प्रधान कार्य मान लिया जाय, तो अभी तक इस बातका

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* बहुत लोक कोम्टके Positive Philosophy नामक दर्शन शास्त्रका नामानुवाद 'प्रत्यक्षवाद' लिखते हैं। हमारी समझमें यह भ्रम है। जिसको Empirical Philosophy कहते हैं, अर्थात् लक, मिल, ह्यूम और बेनका मत ही प्रत्यक्षवाद कहलाता है। इस प्रबन्धमें हमने इसी अर्थमें प्रत्यक्षवाद शब्दका प्रयोग किया है।

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