पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/७०

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प्रकृत और अतिप्रकृत।
 

इसी प्रकार मनोवृत्तियोंको लेकर कविने नायक-नायिका बना कर लोगोंकी प्रीतिके लिए लौकिक देवताओंके नामसे उनका परिचय दिया है । किन्तु देवचरित्रके प्रणयनमें कालिदासने मिल्टनकी अपेक्षा अधिक कौशल दिखाया है । कवित्वके हिसाबसे Paradise Lost की अपेक्षा कुमारसंभवका दर्जा बहुत ऊँचा है । हमारी समझमें कुमारसंभवके तृतीय-सर्गकी कविताकी बराबरी करनेवाली कविता किसी और भाषाके किसी महाकाव्यमें नहीं है । किन्तु कवित्वकी बात छोड़ देनेपर केवल कौशलके लिए भी मिल्टनकी अपेक्षा कालिदास अधिक प्रशंसाके पात्र हैं । Paradise Lost पढ़ने में श्रम जान पड़ता है और कुमारसंभवको आदिसे अन्ततक वारंवार पढ़नेसे भी तृप्ति नहीं होती । इसका कारण यही है कि कालिदासने देवचरित्रको मनुष्यचरित्रके साँचेमें ढालकर उसमें अमित माधुर्य भर दिया है। उमा आदिसे अन्ततक मानवी हैं, कहींपर तिलभर भी उनम देवभाव नहीं झलकता। उनकी माता मेना मानवी माताके समान हैं । 'पदं सहेत भ्रम- रस्य पेलवम्' इत्यादि श्लोकार्धके साथ माण्टेगूकी कही ' Like the bud bit by an envious worm' इस उपमाकी तुलना कीजिए । देखि- एगा, उमाकी माता और रोमियोके पिता एक ही प्रकृतिके—सर्वथा मनुष्य हैं । मेना पत्थरके पहाड़की स्त्री हैं, पर उनका हृदय कुलकामिनियोंके समान कुसुम-सुकुमार है।

इसलिए अतिप्रकृत जबतक प्रकृतके अनुकरणपर न होगा, तबतक वह उपयोगी नहीं हो सकता।

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