वाले नहीं है। उनका काम केवल उत्साह बढ़ाना ही है। कल्पनाके द्वारा हम क्रोध, अहङ्कार आदि दुष्टभावोंके वर्णनको गीतमें भावसिद्ध करनेकी चेष्टा. करते हैं, किन्तु वह वर्णन केवल कल्पनात्मक रहता है। समझाये बिना. वह समझमें नहीं आता। इस कारण ऐसे गीत स्वभावसंगत नहीं होते। शोक प्रकट करनेवाले गीत हैं। वे गीत अत्यन्त मनोहर हैं। किन्तु शोक ऋरभाव नहीं है, वह करुणाके अन्तर्गत होनेसे भक्ति और प्रेमकी श्रेणी में ही आ जाता है।
इसके उपरान्त राग-रागिनियोंके सम्बन्धमें कुछ कहना है । जैसे तेतीस आदि-देवतोंसे तेतीस करोड़ देवतोंकी सृष्टि हुई है, वैसे ही छः रागों और छत्तीस रागिनियोंसे, अद्भुत कल्पनाके प्रभावसे, असंख्य उपराग उपरागिनी और उनके लड़के, नाती-पोते तक कल्पित हुए हैं। यह बड़ा ही रहस्य है। हिन्दुओंकी बुद्धि अत्यन्त कल्पना-कुतूहलसे परिपूर्ण है । उसने शब्दार्थ मात्रको मनुष्य-चरित्र-विशिष्ट बना डाला है। प्राकृतिक वस्तुओं या शक्तियों भरको देव-पदवी दे दी है। पृथ्वी देवी है; आकाश, इन्द्र, वरुण, अग्नि, सूर्य, चन्द्र, वायु-सभी देवता हैं; नद--नदी भी देव-देवी हैं। सब देव- देवी मनुष्यके समान शरीरधारी हैं। उन सबके स्त्री, स्वामी, पुत्र, पौत्र आदि हैं। तर्कके द्वारा पहले यह सिद्ध हुआ कि इस जगतकी सृष्टि करने- वाला एक कोई है। वह ब्रह्मा है। देखा जाता है कि घट-पट आदि वस्तु- ओंकी सृष्टि करनेवाला एक हाथ-पैरोंवाला साकार पुरुष होता है। इस कारण ब्रह्मा भी साकार और हाथ पैरोंवाले हैं। अधिकता यह है कि उनके चार मुँह हैं। उनके एक ब्रह्माणीक होना भी जरूरी ठहरा। एक ब्रह्माणी भी हैं। ऋषिगण उनके पुत्र हुए। हंस उनका वाहन हुआ—नहीं तो चलते-फिरते वे कैसे?—ब्रह्मलोकमें गाड़ियाँ या पालकियाँ नहीं है। कल्पना करनेवालोंको केवल इतनेहीसे सन्तोष नहीं हुआ। मनुष्य जैसे काम, क्रोध, आदिके वशीभूत, महापापी होते हैं वैसे ही ब्रह्मा भी कन्याहारी हैं।
जहाँ सृष्टिकर्ता आदि अप्रमेय पदार्थ—आकाश, नक्षत्र, पहाड़, नदी आदि प्राकृतिक पदार्थ—अग्नि, वायु आदि प्राकृतिक क्रियायें—काम आदि मानसिक वृत्तियाँ—इत्यादि सब मूर्ति-विशिष्ट पुत्र-स्त्री-युक्त और सभी
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