भारतवर्ष कई सौ वर्षों से पराधीन क्यों है ? इस प्रश्नके उत्तरमें सब लोग कहा करते हैं कि भारतके लोग हीनबल हैं। इसी कारण “Effe- minate Hindoos. " यूरोपियनोंकी जिह्वापर सदा बना रहता है । यही भारतका कलंक है। किन्तु उधर यूरोपियनोंके मुखसे ही भारतवर्षके सिपाहियोंके बल और साहसकी प्रशंसा सुनी जाती है। उन्हीं स्त्री-स्वभाव हिन्दुओंके बलसे ही काबुल जीता गया। इसमें भी कोई सन्देह नहीं कि उन्हीं स्त्रीस्वभाव हिन्दुओंकी सहायतासे उन्होंने भारतवर्षको जीता है। वे स्वीकार करें या न करें, उन्हीं स्त्री-स्वभाव हिन्दुओंके—मराठे और सिक्खोंके—निकट अनेक युद्धोंमें उन्हें परास्त भी होना पड़ा है।
आधुनिक हिन्दुओंका बल-वीर्य इस समय चाहे जैसा हो, इसमें कोई सन्देह नहीं कि वह प्राचीन हिन्दुओंके बल-वीर्यकी अपेक्षा हीन है। हजारों वर्षों की अधीनतासे उसका हास अवश्य ही हो गया है। प्राचीन भारतके लोग अन्य जातियोंके द्वारा विजित होनेके पहले विशेष बलशाली थे। ऐसा समझनेके अनेक कारण हैं। दुर्लक्ष होनेके कारण वे पराधीन नहीं हुए।
हम स्वीकार करते हैं कि इस पक्षका समर्थन करना सहज नहीं है और इस विषयके यथेष्ट प्रमाणोंको प्राप्त करना भी दुस्साध्य है। इस तर्ककी मीमांसा केवल इतिहासके ही सहारे हो सकती है। किन्तु दुर्भा-ग्यवश अन्यान्य जातियोंकी तरह भारतवर्षीय लोग अपनी कीर्तियोंको लिखकर रख नहीं गये हैं।प्राचीन भारतवर्षका इतिहास नहीं है। इसी कारण भारतवर्षके लोगोंकी जो प्रशंसनीय युद्धकीर्ति थी वह भी लुप्त हो गई हैं। जो ग्रन्थ 'पुराण' के नामसे प्रसिद्ध हैं उनमें यथार्थ इतिहास कुछ भी नहीं है। जो कुछ है वह अस्वाभाविक अमानुषिक कथाओंसे ऐसा ढका हुआ है कि यथार्थ घटनाका निश्चय किसी तरह नहीं होता।
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