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पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/९४

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भारत-कलंक।
 

रणमें मारा गया तभी हिन्दूसेना युद्ध छोड़कर भाग गई—फिर युद्धके लिए एकत्र नहीं हुई। फिर किसके लिए युद्ध करती? जब राजा मर गया या अन्य कारणसे उसने राज्य-रक्षाकी चेष्टा छोड़ दी, तभी हिन्दुओंका युद्ध समाप्त हो गया। फिर किसीने उस राजाके स्थानपर खड़े होकर स्वतन्त्र- ताकी रक्षाका उपाय नहीं किया; साधारण समाजसे अरक्षित राज्यकी रक्षाका उद्योग नहीं हुआ। जब भाग्यके फेरसे यवन, ईरानी, शक या बाल्हीक किसी प्रदेश-खण्डके राजाको रणमें हरा कर उसके सिंहासनपर बैठे, तभी प्रजाने अपने पहले स्वामीकी तरह उन अनार्य राजाओंका भी आदर किया। राज्यके छीनने में उन्होंने कोई आपत्ति नहीं की। तीन हजार वर्षसे अधिक समय तक, आयोंके साथ आर्यजातीय, आर्यजातीयोंके साथ भिन्नजातीय, भिन्नजातीयोंके साथ भिन्नजातीय—मगध ( बिहार ) के साथ कान्यकुब्ज, कान्यकुब्जके साथ दिल्ली, दिल्लीके साथ लाहौर, हिन्दुओंके साथ पठान, पठानोंके साथ मुगल—लड़-झगड़कर सदा समरकी आग जलाकर देशको नष्टभ्रष्ट करते खाकमें मिलाते रहे हैं। किन्तु इन सब युद्धोंमें केवल राजाके साथ राजाकी लड़ाई होती थी। साधारण हिन्दू समाजने कभी किसीकी ओर होकर किसीसे युद्ध नहीं किया। हिन्दू राजाओं अथवा हिन्दुस्तानके राजाओंको बारबार भिन्न जातियोंने जीता है। किन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि साधारण हिन्दू समाज कभी किसी अन्य जातिके द्वारा जीता गया है। क्यों कि साधारण हिन्दू जातिने कभी किसी अन्य जातिके साथ युद्ध ही नहीं किया।

इस विचारमें हिन्दू जातिकी बहुत दिनोंकी पराधीनताका दूसरा कारण प्रकट हो गया। उस कारणको हिन्दूसमाजकी फूट, समाजमें जातीय भावकी स्थापनाका अभाव, जातिहितैषिताकी कमी, आदि चाहे जो कुछ कहिए। हम यहाँपर विस्तारके साथ उसे समझानेकी चेष्टा करते हैं।

मैं हिन्दू हूँ, तुम हिन्दू हो, यह हिन्दू है, वह हिन्दू है, और भी लाखों हिन्दू हैं। इन लाखों हिन्दुओंकी जिसमें भलाई है, उसीमें मेरी भी भलाई है। जिसमें उनका मंगल नहीं है उसमें मेरा भी मंगल नहीं है । अतएव सब हिन्दुओंका जिसमें मंगल हो वही मेरा कर्तव्य है और किसी भी हिन्दूका

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