पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१०३

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बगुला के पंख १०१ जुगनू ने काफी का प्याला उठाया । नवाब ने सिगरेट जलाई । एकाएक जुगनू की नज़र टेबल पर पड़े पर्स पर पड़ी, उसने कहा, 'अरे, लाला अपना पर्स तो यहीं भूल गए।' 'लाला लोग अक्सर यह गलती किया करते हैं।' नवाव ने धुनां फेंकते हुए कहा । 'उसे उठाकर चुपचाप जेब के हवाले करो।' जुगनू का कलेजा कांप गया। उसने गहरी नज़र से नवाब की ओर देखा । कोई उनकी बात नहीं सुन रहा था । न किसीका उनकी ओर ध्यान ही था। नवाब बेपरवाही से सिगरेट का धुआं फेंक रहा था। जुगनू ने पर्स को उठाते हुए कहा, 'इसे लाला को वापस करना होगा।' 'देखा जाएगा दोस्त, अभी तो इसे जेब में रखो।' फिर उसने जरा झुककर आहिस्ता से कहा, 'लाला लोग ऐसे मौके पर भूला हुआ पर्स वापस नहीं लिया करते।' 'क्या मतलब ?' 'मतलब यह कि वे इस तरह पर्स भूल जाने के लिए ही ऐसी दावतें किया करते हैं।' 'मैं तुम्हारा मतलब नहीं समझा।' 'समझते रहना, अभी मासूम बच्चे हो । धीरे-धीरे बहुत-सी बातें समझनी पड़ेंगी।' जुगनू ने कुछ-कुछ नवाब का मतलब भांप लिया। उसने कांपते हाथों से पर्स जेब में डाल लिया। नवाब ने कहा, 'अब दावत खत्म, चलो।' वह उठ खड़ा हुआ । जुगनू भी चुपचाप उठा। टैक्सी को नवाब ने इशारे से बुलाया और दोनों उसमें जा बैठे। नवाब ने कहा, 'एक चक्कर कनाट प्लेस का लगायो दोस्त, और फिर दरियागंज चलो।' वह इत्मीनान से बैठकर सिगरेट का धुग्रां फेंकने लगा। जुगनू की धड़कती हुई छाती पर पर्स जैसे पहाड़ के समान वजनी मालूम पड़ रहा था। वह उसी- की बाबत सोच रहा था। दोनों में बिलकुल बातचीत नहीं हुई। टैक्सी ने दरियागंज आकर अपनी चाल ढीली की। दरियागंज पहुंचकर नवाब ने टैक्सी को छोड़ दिया। दोनों फिर रस्टोरां