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पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/११३

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बगुला के पंख १११ ऐसी हैं कि जाते ही तबियत बहाल हो जाएगी।' 'खैर, सोचूंगा।' 'सोचूंगा नहीं । बस चले ही जाओ। अब तो डाक्टर सेन ने भी यही राय दी है।' 'अच्छी बात है । आप तार दे दीजिए । सोमवार को चल दूंगा । तुम मुंशी, क्या कर रहे हो ? तुम्हारा सब काम चल रहा है न ?' 'आप जैसे-जैसे आदेश देते जाते हैं, वही करता जा रहा हूं।' 'भई, ज़रा लाला बुलाकीदास को संभाले रहना ।' 'आप बेफिक्र रहें । लेकिन आप कहें तो मैं साथ चलूं ।' 'न, न, ऐसी ज़रूरत नहीं है । ज़रूरत हुई तो लिलूँगा।' 'और किसी बात की आवश्यकता हो तो कहिए।' 'ऐसी कोई बात नहीं है ।' शोभाराम ने ये शब्द तो कहे, पर उनकी वाणी सूखी हुई थी। वात यह थी कि रुपये-पैसे की उन्हें इस समय बड़ी तंगी थी। कांग्रेस से वे केवल डेढ़ सौ रुपये ही लेते थे, पर इतने में घरखर्च भी बड़ी कठिनाई से चलता था। फिर बीमारी का खर्चा । पद्मादेवी के कई आभूषण बिक चुके थे। जुगनू यह बात जानता था। शोभाराम की पेशानी पर भी चिन्ता की रेखाएं थीं। पर शोभाराम बड़े दृढ़ चरित्र के व्यक्ति थे । कर्जा वे लेते न थे। पर इस समय तो रुपयों को सख्त ज़रूरत थी। पर इस समय इस प्रसंग में किसीने बातचीत नहीं की। शोभाराम ने पद्मादेवी से कहा, 'चाय बनाओ ज़रा, और थोड़ा नाश्ता भी।' पर जुगनू और डाक्टर एकदम दोनों उठ खड़े हुए। बोले, 'नहीं, इस समय भाभी को कष्ट मत दो।' डाक्टर खन्ना ने कहा, 'बस, मैं अब चला।' जुगनूं ने कहा, 'मैं भी चलता हूं भाई साहब, सुबह मैं आऊंगा । आप तैयारी कीजिए।' शोभाराम ने कोई जवाब नहीं दिया। दोनों चल दिए।