पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१२५

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बगुला के पंख १२३ भी चित्र बनाए हैं ?' 'जी हां, जब आप मेरे घर पाएंगे तो दिखाऊंगा।' 'अपनी पत्नी के भी चित्र बनाए हैं ?' 'जी नहीं। 'क्यों ? क्या वह खूबसूरत नहीं है ?' 'नहीं, यह बात नहीं । असल में मैं अभी कैमरा नहीं खरीद सका हूं। एक अच्छा-सा कैमरा खरीदने की जुगत में हूं।' 'मैं इस सम्बन्ध में शायद तुम्हारी कुछ मदद कर सकूँ । एक अच्छा कैमरा मेरी नज़र में है।' जुगनू ने एक टटोलनेवाली दृष्टि उसपर डाली। 'तो आप ज़रूर ही उसकी बात तय कर डालिए । लेकिन अन्दाज़न उसकी कीमत क्या होगी?' 'सस्ता ही मिल जाएगा । गरज़मन्द आदमी है। फेंक देने पर तुला हुआ है। तुम जानो सब लोग तुम्हारे जैसे आर्टिस्ट तो होते नहीं। काम की चीज़ को कूड़ा समझते हैं।' 'आप ठीक कहते हैं साहब, कला ही से सौंदर्य की परख होती है। सौंदर्य संसार की सबसे बहुमूल्य वस्तु है । कलाकार उसे संसार के जीवन-संघर्ष से बाहर निकालकर सजाता है । कलाकार के इस परिश्रम को समझना हर किसी के बलबूते की बात नहीं है। समझ रहे हैं न आप ?' जुगनू ने इस बेवकूफ आदमी की ग्रामोफोन के रिकार्ड की भांति घिसी- पिटी बात सुनकर हंसते हुए कहा, 'खूब समझ रहा हूं भई । मालूम होता है, सौंदर्य परखने की यह नज़र तुमने अपनी स्त्री से पाई है।' राधेमोहन पत्नी की स्मृति में मुग्ध हो गया। उसने उसी मुग्ध भाव से कहा, 'उसकी बात क्या कहूं, वह तो एक मधुर रागिनी है। एक कल्पना है, जिसमें चन्द्रमा की शीतलता भी है और चांदनी का उजाला भी।' 'और गुलाब, बेला, चमेली, चम्पा, जुही, गेंदा, इनकी बहार नहीं है ?' 'योह, आप कवि हैं न, आप ही यह बात इस तरह कह सकते हैं।' 'लेकिन भाई, इन बातों को समझने की योग्यता कितनों में है !' 'अहा हा, कहा है-अरसिकेषु कवित्त्व निवेदनम्, इसीसे तो मेरी पत्नी ने जब से आपकी कविता सुनी है, आपकी प्रशंसा करती नहीं अघाती।'