बगुला के पंख १२६ 'ठीक ही होता है । मैं यदि कहीं गलती करता हूं तो उसे वहीं सुधार लेता हूं। अपनी गलती को समझने की योग्यता मुझमें है।' 'मुझमें नहीं है ?' 'शायद नहीं है।' 'कैसे भला?' 'तो आप बताइए कि आप शारदा को इश्क का पाठ क्यों पढ़ाते हैं ? किस- लिए उसके चारों ओर मंडराते फिरते हैं ? क्या काम है आपका उससे ? क्या आप नहीं जानते, वह एक शरीफ खानदान की क्वांरी लड़की है ?' 'तो फिर ?' जुगनू ने तैश में आकर कहा । 'तो फिर क्या, मुझे तो आप शरीफ आदमी नहीं मालूम देते। क्या आप मुझे बता सकते हैं कि आप किस शरीफ खानदान में पैदा हुए हैं, और आपकी पुश्तैनी हैसियत क्या है ? जुगनू के शरीर से पसीना छूटने लगा। उसका मुंह सूख गया । परशुराम ने यद्यपि केवल क्रोध और उद्दण्डता से ही वह बात कही थी पर जुगनू के मन में चोर बैठ गया। उसने कहा- 'आप गालियां देने पर आमादा हैं, मैं आपसे बात करना पसन्द नहीं करता।' 'तो मैं भी आपका शारदा के पीछे मंडराना नहीं पसन्द करता।' 'पसन्द-नापसन्द करनेवाले प्राप होते कौन हैं ? शारदा स्वयं ही मुझसे मिलना पसन्द करती है।' 'लेकिन मैं तो पसन्द नहीं करता ?' 'आप शारदा के कौन होते हैं ?' 'मैं उसका शिक्षक और रक्षक हूं।' जुगनू ने परशुराम के चेहरे की ओर देखा । वह कठोर और रूखा चेहरा इस समय' क्रोध से लाल हो रहा था। उसने कहा, 'आपको और भी कुछ कहना है ?' 'जी हां, मुझे यही कहना है कि आप शारदा से मिलना बन्द कीजिए।' 'नहीं तो आप गालियां देंगे ?' 'गालियां ही क्यों, आवश्यक होने पर मारपीट भी कर सकता हूं।'
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