पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१४

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बगुला के पंख
 

१२ बगुला के पंख पैंतीस वर्ष का तरुण था। यह पुरुष दुबला-पतला, रोगी-सा था। उसके चेहरे की हड्डियां उभरी हुई थीं, परन्तु इस समय वह बगुले के पर के समान उज्ज्वल खादी का कुर्ता पहने हुए था । एक दृष्टि में उसने जुगनू को नहीं पहचाना, पर थोड़ी ही देर में उसके चेहरे पर मुस्कान छा गई । उसने कहा, 'अरे, तुम हो मुंशी ? लेकिन यह तुमने अपनी क्या हालत बना रखी है ? तुम तो भई, एकदम भंगी बने हुए हो ।' तरुण का नाम शोभाराम था । वह पंजाब के जिला गुरुदासपुर का निवासी था। पांच साल पूर्व उसने अर्थशास्त्र और इतिहास में एम० ए० पास किया था । वह कांग्रेस का एकनिष्ठ कार्यकर्ता था । कांग्रेस के काम से ही उसे कई बार जेल जाना पड़ा था। जेल ही में उसकी मुलाकात जुगनू से हुई थी। शोभाराम सदा का मरीज़ था । उसे श्वास की बीमारी थी । अपच भी रहता था। जेल में वह एक बार सख्त बीमार हो गया था। तब जुगनू ने उसकी बड़ी सेवा की थी। जुगनू की वह सेवा शोभाराम भूला नहीं था। इसीसे उसे देखते ही वह प्रसन्न हो गया। परन्तु उसके मलिन वेश को देखकर जो उसने उसे व्यंग्य' से भंगी कहा, उसे सुनकर जुगनू सिटपिटा गया। वह वास्तव में भंगी है, यह तो शोभाराम जानता न था। शोभाराम ने उसके कन्धे पर हाथ धरकर कहा, 'क्या कर रहे हो ?' 'कुछ कर-धर रहा होता तो क्या यह हालत बनती ?' शोभाराम ने सिर से पैर तक एक बार उसकी ओर देखा। फिर हंसकर कहा, 'वाह, क्या धज है, यह खाकी पतलून, और वेतुकी कमीज़ । साफ जाहिर है कि यह तुम्हारी अपनी नहीं है । किसीकी चुरा लाए हो या जामा मस्जिद से खरीद ली है।' जुगनू हंस पड़ा । उसने ज़रा लजाते हुए कहा, 'भाई साहब, आप जो भी चाहें, कह लीजिए।' 'अरे भाई, यह ज़माना क्या पतलून पहनने का है ? खद्दर का कुर्ता और धोती।' शोभाराम मुक्त भाव से हंसा । फिर कहा, 'खैर, चलो अब घर चलें।' उसने इधर-उधर देखा। एक स्कूटर खाली जा रहा था। उसे रोक दोनों उसपर जा बैठे। स्कूटर पर बैठकर शोभाराम ने कहा, 'भई मुंशी, क्या नाम है तुम्हारा? लो देखो, मैं नाम ही भूल गया। बड़ी खराब याददाश्त हो गई 1 ,