बगुला के पंख हमारे गर्ल्स स्कूल में एक बहुत उत्तम पुस्तकालय हो जाए।' 'यह तो आपके बहुत प्रशंसनीय विचार हैं।' 'मैं आपको एक और कष्ट देना चाहती हूं।' 'आज्ञा कीजिए।' 'इसी सोमवार को हमारे स्कूल का वार्षिकोत्सव है । लड़कियां एक अभिनय कर रही हैं। आप ही उसका सभापतित्व कीजिए । देखिए, इन्कार मत कीजिए।' 'मैं इस योग्य तो नहीं हूं। पर आपकी आज्ञा है तो पालन करना ही होगा।' 'बहुत-बहुत धन्यवाद । हम तो यह भी चाहते हैं कि कमेटी हमें कुछ सहायता भी दे । सब भार अकेले मेरे ही पर्स पर है । हमें सहायता मिलनी ही चाहिए। ये तो कुछ सुनते नहीं, आप ही कुछ कीजिए।' 'ज़रूर, ज़रूर । मुझसे जो बन पड़ेगा, अवश्य' करूंगा। अब आज्ञा दीजिए। बहुत-से आवश्यक काम पड़े हैं।' लाला बुलाकीदास उठ खड़े हुए। उन्होंने कहा, 'गाड़ी आपको छोड़ आएगी। मैं शायद अाज न आ सकूँ । ज़रा कल की मीटिंग का एजेण्डा देख लेना।' 'आप चिन्ता न करें लालाजी।' और वह शान से दोनों को नमस्कार करके गाड़ी में जा बैठा। गाड़ी में बैठकर उसने सन्तोष की सांस ली । नीबू के अचार की खटास अब भी उसके मुंह में आ भरी थी। ३९ डेरे पर लौटकर जुगनू ने देखा कि नवाब आरामकुर्सी पर दोनों टांग पसारे सिगरेट का धुआं उड़ा रहा है। उसके पास ही दूसरी कुर्सी पर। एक और बुजुर्ग हैं। ये कोई नये ही आसामी हैं । जुगनू ने कभी उन्हें देखा नहीं है, मगर वैठे इस इत्मीनान से हैं जैसे यह इन्हींका घर हो । दुबले-पतले आदमी, लम्बा कद, चुचका हुआ चेहरा, आंखों पर बड़े-बड़े तालों और मोटे फ्रेम का पुराना चश्मा, बेतरतीबी से चेहरे पर छितराई हुई खिचड़ी दाढ़ी, सिर पर पुराने फैशन के लम्बे बाल, उम्र पचास के पार । ढीला पायजामा, और चपकन । उंगलियों में तीन-चार चांदी की अंगूठियां। मुंह में ठूसी हुई पान की
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