पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१४२

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१४० बगुला के पंख समझा । पर उसने कहा, 'आप ठीक फर्माते हैं मौलाना।' 'मेरे प्यारे,' मौलाना ने जुगनू के कन्धे पर हाथ रखते हुए मुरव्वाना लहजे में कहा, 'ज़िन्दगी एक पहाड़ है जिसपर बड़ी मुश्किल से धीरे-धीरे चढ़ा जाता है, मगर गिरने में चन्द मिनट ही लगते हैं । हूं ऊं !!' मौलाना ने कुछ इस अन्दाज़ से मुस्कराकर हूं ऊं कहा मानो कोई बड़ा भारी राज़ जाहिर कर दिया हो, 'देखो दोस्त, तुम्हारी उम्र ही अभी क्या है । भाई, यह 'तुम' कहने से नाराज़ न होना । अभी तुम मेरे लड़के की उम्र के हो । हां, मैं कह रहा था तुम्हारी उम्र में आदमी खुश रहता है । बड़ी-बड़ी उम्मीदों के कुलाबे बांधता है। वह हर आदमी से उम्मीद रखता है, हर चीज़ को आसान समझता है, लेकिन वह उन्हें कभी पा नहीं सकता ; सिर्फ एक चीज़ उसे ज़रूर ही मिलती है- मौत ! समझे भाईजान ! मंज़िलें दूरतर हो गईं, फासले कम से कम रह गए । हूं ऊं !' मौलाना ने एक गहरी सांस ली और बड़े-बड़े चश्मे के तालों से धूरकर जुगनू को देखा । जुगनू को कुछ भी नहीं सूझ पड़ रहा था कि क्या कहे। उसने कहा, 'आपने तो मुझे डरा दिया, मौलाना ।' 'क्या मौत से ? डर गए तुम मेरे नौजवान दोस्त ! लेकिन अभी मौत को तुम क्या जानो । मुझे देखो-तिल-तिल वह मुझे खा रही है । जब मैं तुम्हारी तरह जवान था, एक मिनट के लिए, अगर आज वही हो पाऊं तो कस्म खुदा की, मैं अपने को पहचानूं ही नहीं। देखो, मेरे काले धुंघराले बाल थे; ठीक वैसे जैसे तुम्हारे हैं । भरे हुए कल्ले थे, वे अब चुचक गए हैं । गालों पर झुर्रियां पड़ गईं। दांत टूट गए । ये सब मौत के खेल हैं । अमा, जैसे बिल्ली चूहे को मारने से पहले उसके साथ खेलती है, उसी तरह मौत भी अपने शिकार को खत्म करने से पहले उसके साथ खेल खेलती है । और इस तरह कदम-कदम वह नज़दीक आती जाती है । समझे मियां-खाना, पीना, सांस लेना, सोना, जागना सब कुछ मौत ही है । हूं ऊं !' उन्होंने अपने बड़े-बड़े तालों के चश्मे में से घूरकर जुगनू को देखा, फिर कहा, 'अभी तुमपर जवानी का नशा छाया है, मुहब्बत की आंख-मिचौनी खेलने में बहुत मज़ा आता होगा। अमा, ये सब खेल मेरे खेले हुए हैं । लेकिन इसके बाद ? इसके बाद बस मौत ! वही मौत कि जिसकी गोद में जाकर कोई वापस नहीं लौटता । चार पैसे का मिट्टी का खिलौना यदि टूट जाता है तो उसके टूटे