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पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/१६

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१४ बगुला के पंख से वार्तालाप कर रहा था। उसे तो उस सुसज्जित ड्राइंगरूम में भीतर कदम रखते झिझक हो रही थी। पर उसे देखते ही शोभाराम ने कहा, 'प्रायो। भीतर चले आओ, मुंशी भाई । ये मेरे अन्तरंग मित्र यहां बैठे हैं । इनसे परिचय प्राप्त करो। देखो ये हैं बाबू दीनानाथ टण्डन, इलाहाबाद बैंक के मैनेजर। और आप हैं मेरे रिश्ते के मौसा श्री मल्होत्रा, कालेज में प्रोफेसर हैं । और आप हैं डाक्टर खन्ना, मेडिकल कालेज के इञ्चार्ज । और ये हैं मेरे जेल के मित्र मुंशी 'मुंशी..." शोभाराम जगनपरसाद का नाम भूल गया। वह मुस्कराकर उसकी ओर देखने लगा। जुगनू ने सबको हाथ जोड़कर नमस्कार किया और कहा, 'मेरा नाम जगन- परसाद है-मुंशी जगनपरसाद ।' सबने उठकर उससे हाथ मिलाया। सबने कहा, 'आपसे मिलकर हमें बड़ी खुशी हुई है। मुंशीजी, आइए बैठिए' और जुगनू किसी तरह साहस बटोरकर अपने जीवन में पहली ही बार भद्र पुरुष की भांति भद्र पुरुषों के बीच आकर कुर्सी पर बैठ गया । डाक्टर खन्ना ने सिगरेट उसकी ओर बढ़ाया । अंग्रेजों की सोहबत में रहकर और लखनऊ के शायरों की सोहबत करके जुगनू अदब-कायदे में पूरा मश्शाक हो गया था । उसने तपाक से उठकर सिगरेट उठाई । शुक्रिया कहा । डाक्टर ने उसकी सिगरेट जलाकर कहा, 'आप शायद पहली ही बार दिल्ली आए हैं, मुंशीजी ?' 'जी हां, कम से कम स्वतन्त्रता के बाद पहली बार ।' 'जुलूस तो आज का खूब शानदार रहा, आपको पसन्द आया ?' 'जी हां, कुछ झांकियां तो गज़ब की थीं।' 'आपकी बातचीत और लहजों में तो लखनवी झलक है। क्या आप लखनऊ रह चुके हैं ?' शोभाराम ने हंसकर कहा, 'लखनऊ में रहने की आपने खूब कही। ये एक नामी-गरामी शायर हैं । लखनऊ के बड़े-बड़े मुशायरों में इन्होंने अपने जौहर दिखाए हैं । जेल में तो हमारा वार्ड इन्हींकी गज़लों से गुलज़ार रहता था।' 'वाह, यह बात है, तो भई, इस इतवार को मेरे यहां दावत रही। सभी दोस्तों को आना होगा। वहां मुंशीजी की शीरी ज़बान की चाशनी चखने को मिलेगी, उम्मीद है।' 'प्रजी वाह, अकेले मुंशी से क्या होगा। दो-चार और शायर आएं तो वहार