बगुला के पंख १५ रहे। एक छोटा-सा मुशायरा ही हो जाए तो लुत्फ है।' प्रोफेसर मल्होत्रा ने कहा। , शोभाराम ने कहा, 'भई मुंशी, मल्होत्रा साहब भी एक अच्छे शायर हैं । खूब नोंक-झोंक रहेगी। खन्ना साहब, ज़रा रयाज़ साहब और बेदर्द साहब को भी बुलवा लीजिए। और रौनक साहब को बुलाना भी न भूलिए।' 'ज़रूर, ज़रूर । खूब लुत्फ रहेगा।' जुगनू ने मुस्कराकर सिर झुका लिया। इसी समय' नौकर ने आकर 'खाना तैयार है', यह सूचना दी। सब लोग उठे और सबके साथ जुगनू भी धड़कते कलेजे से भोजन की टेबुल पर आ बैठा । साफ-सुथरी टेबुल, सुसज्जित और सुंदर क्राकरी, स्वादिष्ट उत्तम सब प्रकार के खाने, गपशप के लम्बे-चौड़े कहकहों के बीच दावत खत्म हुई और जुगनू उसी दावत में अपना सब संकोच, भंगीपन, धो-बहाकर जन्मजात अभिजात्य, सभ्य-शिष्ट पुरुष की भांति सबके साथ खाना खाकर अब ड्राइंगरूम की सुखद कोच पर पड़ा सुगन्धित सिगार पी रहा था। मित्रगण राजनीति, विज्ञान और देश-विदेश की भांति-भांति की बातें कर रहे थे । जुगनू उन बातों को सुन रहा था, भूत-भविष्य की सोच रहा था। धुएं के छल्ले बना रहा था और बीच-बीच में 'हूं-हां' कर देता था। जब दोस्त उठने लगे तो खन्ना ने उससे हाथ मिलाते हुए कहा, 'मुंशीजी, भूलिएगा नहीं। अगला इतवार शाम को आठ बजे ।' 'शुक्रिया, बहुत-बहुत शुक्रिया ।' जुगनू ने हंसते हुए झुककर कहा। सबसे हाथ मिलाए, नमस्ते किया। जब सब चले गए तो शोभाराम ने कहा, 'भई मुंशी, अब ज़रा मुझे एक बार दफ्तर जाना पड़ेगा। चाय के वक्त तक आ जाऊंगा। तुम तब तक आराम करो। थके हुए हो । फिर रात को डटकर बातें होंगी।' चलते वक्त शोभाराम ने अपनी पत्नी को भी आवाज़ देकर कहा कि वह उसकी आवश्यकताओं का ख्याल रखे और शोभाराम चले गए। जुगनू उस सुसज्जित ड्राइंगरूम में सोफे पर पैर फैलाकर रैड एण्ड व्हाइट का कश खींचने लगा।
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