वगुला के पंख उत्तेजित हो जाता है । पर ज्यों-ज्यों वह बड़ा होता जाता है, वह साहसी और वीर होता जाता है। पर प्रेम की भावना उसमें वैसी ही कोमल बनी रहती है। परन्तु जव प्रेम के साथ काम का मिश्रण हो जाता है तो रक्त और नाड़ियों में एक तीव्र उत्तेजना का अनुभव होने लगता है। जब काम-विकार की अनुभूति से प्रेम मिलकर एक अत्यन्त आनन्दप्रद कार्य बन जाता है, उस समय उच्चकोटि के प्राणियों में, भले ही वे भिन्नजातीय' हों, एक इन्द्रिय होती है जिसमें रक्त का दबाव हद दर्जे तक पहुंच जाता है । इस क्रिया पर नियंत्रण ही उन्नति का मूल है । एक बात यहां और महत्त्वपूर्ण कहूंगा, हमेशा व्यक्तिगत आदतें मानसिक होती हैं ; शारीरिक नहीं। आदतों की भिन्नता, आयु और स्वभाव से भी सम्बन्धित है। यदि खराब आदतें शरीर में घर कर जाती हैं, तो मनुष्य निर्लज्ज, अविवेकी और कामुक बन जाता है। जुगनू ऐसा ही तरुण था। उसकी कामवासना और कामुकता को वास्तव में दोष नहीं दिया जा सकता, वह कुसंस्कारी, अशिक्षित और बचपन में हीन स्थिति में पला था। परन्तु उसका शरीर अत्यन्त स्वस्थ और मस्तिष्क अत्यन्त चेतन था, अत: उसमें प्रचण्ड कामवासना थी। किन्तु संयम का उसमें नामोनिशान न था। यही कारण था कि प्रेमभाव के पनपते ही कामभाव उसपर आक्रमण करता था। और स्त्री मात्र के प्रति उसकी कामुक दृष्टि थी। शारदा के प्रति उसकी उद्दाम कामवासना चरम सीमा को पहुंच चुकी थी। उसका प्रत्येक रोमकूप जल रहा था। उसका प्रत्येक रक्तविन्दु आग का अंगारा बन रहा था। उसकी अांखें सुर्ख हो गईं, और शरीर का सारा रक्त मस्तिष्क में आ जमा हुआ। उसे अब न समारोह अच्छा लग रहा था, न किसी आदमी का साथ । वह शारदा पर सिंह की भांति आक्रमण तक करने पर आमादा था। उसकी उत्तेजना अब ठीक उस सीमा तक पहुंच चुकी थी जब मनुष्य' भयानक बलात्कार या खून तक करने पर आमादा हो जाते हैं। उसकी समूची प्रेमानुभूति उद्दाम कामवासना में परिवर्तित हो चुकी थी, वह लम्बे-लम्बे सांस लेता हुआ सब लोगों की भीड़-भाड़ से दूर-दूर चक्कर काटने लगा। लड़कियां अभी भी गा-बजाकर अपना मनोरंजन कर रही थीं। सूर्यास्त हो चुका था। एकाध तारा आकाश में टिमटिमाने लगा था, थोड़ी ही देर में चन्द्रोदय हुआ। बड़ा ही सुहावना मौसम था, पर उसे तो यह सब असह्य हो रहा था।
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