१७४ बगुला के पंख आरम्भ हुआ। विरह-विह्वल दृष्टि, आवेश और अभिलाषा से पूरित पदक्षेप, विरह- विथा-पीड़िता राधा-दूर से वंशी की ध्वनि सुनते ही भीता-चकिता हरिणी की भांति चौकड़ी भरती हुई–नानाविध भाव-मुद्राओं में नृत्य करती । दर्शक मुग्ध, भाव-विमोहित । जैसे सचमुच कालिंदी-कूल पर कदम्ब के सुनहरे फूलों से लदे हुए वृक्ष के नीचे विरहिणी राधा युग-युग से प्रतीक्षा कर रही थी- कृष्ण की ; मान-अभिमान, भूत-भविष्य, कुल-मान सबको छोड़कर, केवल दूर से आती हुई बांसुरी के सुर में अपनी सम्पूर्ण चेतना को डुबोकर । सारी देह आकुल- व्याकुल पीड़ा से जैसे आपूर्यमाण हो रही है । चितवन में, भौंहों में, चरणगति में, देह-यष्टि में पीड़ा है । केवल पीड़ा-विरह-पीड़ा, विरह-विथा । व्याकुलता जैसे मूर्तिमती वहां आ खड़ी हुई । नृत्य की समाप्ति पर पर्दा गिर गया । बाहर तालियों की गड़गड़ाहट निरंतर चल रही थी और एक बार नृत्य की पुकार चल रही थी। लोग चिल्ला रहे थे 'और एक बार, और एक बार ।' मैडम ने लपकते हुए आकर शारदा को अंक में भर लिया, 'वण्डरफुल, वण्डरफुल माई डीयर ! लेकिन एक बार तुम्हें और जाना होगा। 'नहीं मैडम, मैं स्टेज पर गिर पड़गी । अब नहीं ।' इतना कहकर शारदा दोनों हाथों में अपना मुंह दबाकर कुर्सी पर धम्म से बैठ गई। ५१ लोकसभा और राज्यसभा के चुनावों की देश भर में धूम मच गई। भारत की राजधानी भी इस सरगर्मी में उथल-पुथल होने लगी। दिल्ली की प्रांतीय कांग्रेस कमेटी ने दिल्ली शहर से जुगनू को खड़ा किया। और उसके मुकाबिले जनसंघ ने लाला फकीरचन्द को पकड़ा। इस सम्बन्ध में उनके सबसे बड़े सलाह- कार बने उनके साले जोगीराम । लाला के रिश्ते के, मुहल्ले के, बिरादरी के अधिकांश तरुण जनसंघी थे। उन्हीं तरुणों के नेता थे जोगीराम । स्वयं तरुण न थे, पर सींग-पूंछ कटाकर बछड़ों में शरीक हो गए थे। जोगीराम बड़े जोड़-
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