पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/२१५

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बगुला के पंख २१३ 'तो खैर, मुझे मंजूर है । पर लड़कियों को पसन्द मैं करूंगा । इस सम्बन्ध में स्त्रियों की पसंद दो कौड़ी की होती है। आप बुरा न मानिए विभाजी, तुलसीदासजी कह गए हैं : 'नारि न मोह नारि के रूपा।' इतना कहकर विद्यासागर अपनी अस्वाभाविक हंसी हंस दिया। फिर उसने कहा, 'खैर, यह काम तो निबटा, अब मीटिंग में कुछ गाने-बजाने का, मनोरंजन का, शेर और कविता-गायन का भी प्रबन्ध होना चाहिए । अफसोस, मुंशी बीमार हैं, वरना वे अकेले ही वह समा बांध देते कि लोग पत्थर बन जाते। यह काम स्पीच से भी ज़बर्दस्त है। इससे ज्योंही श्रोताओं के दिल की कली खिले, झट उनसे मनचाही चीज़ कवूल करवा ली जाए।' 'अच्छी बात है । संगीत के लिए मैं दो लड़कियां ले आऊंगी। एकदम क्लासिकल संगीत होगा। वन्देमातरम् और जनगन गाने के लिए पांच लड़कियों का एक बैच आ जाएगा। आप तानपूरा और तबले का प्रबन्ध कर लीजिए।' विभा ने कहा । 'अब यह प्रबन्ध भी आप ही कर लीजिए विभाजी ! खर्चा जो कुछ हो ले लीजिए।' 'अच्छी बात है।' 'तो बस, बाकी सब काम मैं संभाल लूंगा। अभी मुझे एक बार लाला फकीरचन्द और मुंशी साहब के यहां जाना है। फिर पांच-सात लीडरों के यहां झख मारनी होगी। कम से कम तीन मिनिस्टर तो भाषण दें।' 'लेकिन विद्यासागरजी, वह बंगाली मोशाय बड़ा तगड़ा बोलनेवाला है । ढोंगी, बोलते-बोलते रो पड़ता है। उसके मुकाबिले में कम से कम एक ऐसा बोलनेवाला लाओ जो दो घंटे बोल सके। और ऐसा बोले कि सुननेवालों के कलेजे उछलने लगें।' 'ऐसी क्क्ता तो आप ही हैं भारतीजी, हमारे बीच में ।' 'तो मैं तो अपनी बिसात से करूंगी ही जो बन पड़ेगा। परन्तु आप भी किसी तगड़े मिनिस्टर को टटोलें, नहीं पंडितजी को ले पाएं।' 'खैर देखो, मैं कुछ न कुछ करूंगा। अफसोस पण्डितजी कल यहां नहीं हैं।'