बगुला के पंख न गोमती उसके सामने कभी जुगनू के पास फटकती है, न उससे बात करती है। उसका आधा चूंघट बेशक उड़ गया है । परन्तु हर वक्त तो वह घर में रहता नहीं है, स्कूल जाता है, ट्यूशन पर जाता है । और भी काम-काज करता है। कभी-कभी जुगनू भी उसे एक लम्बे ट्रिप पर भेज देता है। बड़ी विचित्र बात है कि वह चाहे जितनी देर में घर आए, गोमती कभी उससे जवाब-तलब नहीं करती। उसे ऐसा प्रतीत होता है कि वह अब उसकी कभी प्रतीक्षा भी नहीं करती। उसे अब कुछ ऐसा भी प्रतीत होता है कि वह पहले की अपेक्षा कुछ बुद्धिमान हो गया है । वह समझता है कि जो वातें दूसरे लोग नहीं समझ सकते वह उन बातों को भी समझता है । मगर उसके समझने का नतीजा कुछ नहीं है। विद्यासागर पाता है, डाक्टर खन्ना आते हैं, और भी कांग्रेसकर्मी आते हैं, पर ये सब उसी समय आते हैं जव राधेमोहन घर पर होता है । जब वह घर पर नहीं होता, तो गोमती और जुगनू दोनों अकेले ही घर में रहते हैं । एक बीमार है, दूसरी पर्दानशीन औरत है। दोनों घर से बाहर नहीं जा सकते हैं । म्युनिसिपैलिटी का चपरासी प्रतिदिन ग्यारह बजे नियमित रूप से आता है, और कागज़ात पर जुगनू के दस्तखत और ज़वानी हिदायतें ले जाता है । कभी-कभार सैक्रेटरी आते हैं। कई बार वे कह चुके हैं कि वे कब यहां से अपने डेरे पर जा रहे हैं । पर जुगनू कोई सीधा जवाब नहीं देता है । हकीकत यह है कि उसका वहां से जाने का मन नहीं है। जुगनू ने जिस दिन गोमती के हाथ में पर्स थमा दिया और उसकी हथेलियों पर अपने हाथों का दबाव दिया, तब से गोमती का सोया हुआ नारी- तत्त्व जाग उठा है। रुपये एकान्त में जाकर उसने कई बार गिने, पांच सौ थे। अपने जीवन में इकट्ठे इतने रुपये उसने देखे न थे। जुगनू ने कसम खिलाई थी कि वह उन' रुपयों की बात राधेमोहन से न कहे । एक मूढ़ता के अस्तित्व के कारण गोमती ने जुगनू की यह कसम रख ली, पति से नहीं कही। तब से
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