२२२ बगुला के पंख कर रही थी। यह नहीं कहा जा सकता कि अभी इसका क्या परिणाम होता, परन्तु इसी समय जुगनू ने आकर राधेमोहन को अपने हाथों में सिर से ऊंचा उठाकर सहन में फेंक दिया। उसके रोगी शरीर में भी इतना बल था। धरती पर गिरकर राधेमोहन का सिर फट गया। वह 'मार डाला, खून हो गया, आदि चिल्लाता हुआ जीने से नीचे उतर गया और बीच सड़क पर खड़ा होकर चीखने- चिल्लाने और हाय-तोबा करने लगा। देखते ही देखते तमाशाइयों की भीड़ लग गई। उसके सारे कपड़े खून से तर हो रहे थे। लोग पूछ रहे थे क्या बात हुई । और वह जुगनू को बेतुकी गालियां दे रहा था। उसे जान से मार डालने की बड़ी कसमें खा रहा था। जुगनू चुपचाप अपनी चारपाई पर आ बैठा । वह शांत और मौन था। गोमती रसोई में ज़मीन पर चुपचाप बैठी थी। घर में सन्नाटा था । दो-चार आदमी आए। जुगनू से परिचय प्राप्त किया। परिचय' प्राप्त करके आदरभाव प्रकट किया। बाद में झगड़े का कारण पूछा । जुगनू ने निरुद्वेग स्वर में कहा, 'यह आदमी पशु की तरह अपनी औरत को पीट रहा था। मुझसे यह न देखा गया-मैंने इसे उठाकर सहन में फेंक दिया। बस, इतनी-सी बात है।' 'स्त्री को क्यों पीट रहा था ?' 'यह तो इसीसे पूछिए । परन्तु कारण कुछ भी हो, मैं तो किसी औरत इस तरह पीटी जाते नहीं देख सकता न ?' 'पाप ठीक कहते हैं महाशय।' कई लोगों ने जुगनू का समर्थन किया। लेकिन राधेमोहन ने खुले मुंह अपनी स्त्री को व्यभिचारी कहा। और भी बहुत-सी बातें कहीं। बहुत आदमी बहुत बातें कहने लगे। बहुत शोरशराबा हुअा। अन्त में सर्वसम्मति से निर्णय हुआ, जुगनू अपने घर चला जाए। फिर वह जाने, उसकी औरत। जुगनू ने कहा, 'मैं अभी चला जाता हूं। लेकिन ज्योंही उसने ड्योढ़ी से बाहर कदम रखा, लोगों ने देखा गोमती कदम-ब-कदम उसके पीछे चली आ रही है । राधेमोहन ने उसका रास्ता रोककर गाली देते हुए कहा- 'तू कहां जाती है ? 'मैं इनके संग जाती हैं।'
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