पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/२२३

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बगुला के पंख २२१ को कत्ल कर दे । पहले तो उसकी स्त्री ने कितना विरोध किया था पर अब हिमायत लेती है। क्या बात है भला ? क्या कारण है उसका ? इस प्रश्न का कोई उत्तर उसे नहीं मिल रहा था -परन्तु एक अज्ञात भय, आशंका उसके मन में एक सिहरन पैदा कर रही थी। ज़मीन' उसे तपते तवे-सी लग रही थी। संसार उसकी आंखों में घूम रहा था और वह एक प्रकार से उन्मत्त-सा हो रहा था, जैसे बहुत-सी भंग उसने खा ली हो । यद्यपि उसके मन में केवल संदेह ही था। वह इतना बुद्धिमान और दूरदर्शी न था कि संदेह और विवेक के मूल कारणों पर विचार कर सके। न उसमें इतना धैर्य ही था कि तथ्य की तह तक पहुंचे । यद्यपि एक मूढ़ता ही इस समय उसे उत्तेजित कर रही थी, परन्तु कोई नैसर्गिक भीति या अनुभूति थी जो उसके अन्तस्तल को छू रही थी। पशु-पक्षी भी जिस बात का अनुभव कर सकते हैं वह क्यों न करता । परन्तु उसमें साहस का सर्वथा अभाव था। विचारशील पुरुष ही साहस कर सकते हैं। संसार का सबसे बड़ा और सबसे सरल अपराध है-कत्ल । कत्ल कमअक्ल या भोंदू लोग नहीं कर सकते । किसीका कत्ल करने के लिए जिस साहस की आवश्यकता होती है-वह विचारशील पुरुष में ही होता है। राधेमोहन एकदम दब्बू, पोच आदमी था, अतः उसे यह सूझ ही नहीं रहा था कि कैसे अपने घर से जुगनू को निकाले और अपनी पत्नी पर काबू पाए। वह स्कूल नहीं जा सका। बहुत देर तक इधर-उधर घूमता रहा । अन्त में वह किसी अन्तःप्रेरणा से प्रेरित होकर फिर घर जा पहुंचा। घर का द्वार भीतर से बन्द था। सीढ़ियों पर वह चुपचाप जाकर खड़ा होकर सुनने लगा कि भीतर क्या हो रहा है । परन्तु कुछ भी उसे सुनाई नहीं दिया। इसी समय किसीने द्वार खोल दिया। वह जुगनू था, जो हक्का-बक्का राधेमोहन को देख रहा था। सम्भवत: उसने सीढ़ियों पर उसकी पदचाप सुन ली थी। इसी समय राधेमोहन ने देखा-उसकी पत्नी तेज़ी से जुगनू के कमरे से निकलकर रसोई में घुस गई है। उसके वस्त्र भी अस्तव्यस्त हैं। राधेमोहन जुगनू को एक प्रकार से धकेलता हुअा रसोई में घुस गया, और लातों और घूसों से गोमती को मारना प्रारम्भ कर दिया। आश्चर्य की बात थी कि गोमती चुपचाप पिट रही थी। न रो रही थी, न चिल्ला रही थी-जैसे गद्दे की धूल झाड़ी जा रही थी। वह भूमि में पड़ी थी। अपने बचाव की भी कोई चेष्टा नहीं