पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/२२८

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२२६ बगुला के पंख बारात लेकर वह लफंगा नामर्द भी यहां आ पहुंचा, और तमाशा शुरू कर दिया तो क्या होगा ?' 'मैं तो ऐसी कोई संभावना नहीं देखता।' 'फिर भी उस हालत में क्या किया जाएगा? सारी इज़्ज़त धूल में मिल जाएगी, चुनाव की सफलता भी खटाई में पड़ जाएगी। बड़ी ही बदनामी होगी। वे बदज़ात अखबारवाले ज़मीन-आसमान एक कर देंगे। वे तो ऐसे ही स्टंट की तालाश में रहते हैं।' 'लेकिन ऐसा होगा ही यह क्यों सोचते हो ?' 'बुरी बात पहले सोचनी चाहिए।' 'तो फिर देखा जाएगा। नवाब तो कहीं मर नहीं गया है। तुम इत्मीनान से आराम करो और अभी सब किस्म के तरवुदों से बचो। वरना सेहत को खतरा है।' 'लेकिन इज़्ज़त पर खतरा आया तो मैं तो जान ही दे दूंगा।' 'दोस्त, मुहब्बत में तो खतरे ही खतरे हैं। लेकिन तुम नवाब पर भरोसा करो। मैं सब ठीक कर लूंगा। मैं अभी वहां जाता हूं। और उस गधे राधेमोहन से मिलकर पटरी बैठाता हूं। लेकिन एक बात बताओ सच-सच ।' 'पूछो।' 'क्या तुम उस औरत को प्यार करते हो, उसे उसके खाविन्द से छीन लेना चाहते हो?' जुगनू खामोश हो गया। इस समय इस प्रश्न का जवाब उसके पास न था। कोई एक अमोघ शक्ति इस समय उसके कान में कह रही थी कि प्यार-व्यार की बात झूठ है । परन्तु उसने कहा, 'प्यार शायद करता हूं, शायद नहीं करता, कुछ कह नहीं सकता।' 'खैर, पद्मादेवी के सम्बन्ध में क्या कहते हो?' 'उसे मैं प्यार करता हूं।' 'अच्छा । यदि तुम्हें दोनों में से एक को चुनना हो तो किसे चुनोगे ?' 'पद्मा को।' 'अब यदि किसी तरह बिना झगड़े-झंझट यह औरत तुम्हारे पास आ जाए, अपने खाविन्द को छोड़ दे, राधेमोहन भी झगड़ा न करे, तो तुम क्या उसे रख