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पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/२३१

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बगुला के पंख २२६ विवेचन नीति या धर्म पर आधारित न था, जीवन के सत्यों पर आधारित था। वह आदर्शवादी न था, व्यवहारवादी था। नैसर्गिक उद्वेगों को उभरने देना और उन्हें नैसर्गिक रूप में ही शमित होने देना-उसके विचार में सच्चा जीवनदर्शन था, जिसे उसने स्वयं अपने जीवन में भी और जुगनू के जीवन में भी आरोपित किया था। चरित्र, विचारशक्ति और दूरदर्शिता की दृष्टि से वह जुगनू से कहीं अधिक ऊंचा था । जुगनू में न चरित्र की दृढ़ता थी, न विचार- विवेक की दूरदर्शिता । यह बात जुगनू जानता था । और वह नवाब की राय की कद्र करता था। नवाब की इज्जत भी करता था । वह जान गया था कि नवाब उसके जीवन का सर्वोपरि सहारा है । नवाब में एक गुण और था-वह अपने दुर्गुण भी जुगतू से न छिपाता था। सच पूछा जाए तो रंडी के इस दलाल में दुर्गुण थे ही नहीं। वह जो रिश्वत या कटौती या कमीशन जुगनू के सौदे में लेता था, वह जुगनू के सामने, उसीके हाथों से । ऐसे मामलों में जुगनू सीधा हाथ नहीं डालता था। सारे सौदे अब नवाब की ही दुकान में होते थे और नवाब ही नोटों के गट्ठर उसे दे आता तथा अपना हिस्सा ले आता था। इसी तरह काम आगे बढ़ता जा रहा था । मजे की बात यह थी कि इस सम्बन्ध में न जुगनू की कोई बदनामी हो रही थी, न शिकायत । लाला बुलाकीदास के कानों तक कुछ बातें पहुंचीं भी तो उन्होंने सुनी-अनसुनी कर दी। इन छोटी- छोटी बातों पर विचार करने की फुर्सत भी नहीं थी। जुगनू-नवाब का मिलन–मैत्री—कुछ थोड़े ही व्यक्तियों तक सीमित था। ७१ 'बड़े हौसले की औरत निकली, जान पर खेल गई !' 'गोमती ने छत से कूदकर आत्महत्या कर ली और पुलिस पोस्टमार्टम के लिए लाश ले गई है'-नवाब के मुह से यह बात सुनकर जुगनू बिछौने पर से उछल पड़ा । क्षण भर उसके मुंह से बात ही नहीं निकली । फिर उसने धीरे से कहा, 'बहुत बुरा हुआ नवाब, पुलिस यहां भी आ पहुंचेगी। और इस दुर्घटना से मेरा सम्बन्ध जोड़कर अखबारवाले दिल्ली को सिर पर उठा लेंगे।'