२२८ बगुला के पंख नवाब ने एक सिगरेट जलाई और उठकर चल दिया। Oo जुगनू की दलाली रंडी की दलाली से बहुत अधिक लाभदायक प्रमाणित हुई। एक ही वक्त में नवाब ने पचास हजार की पुड़िया बना ली। और अब उसने रैडीमेड कपड़े की एक शानदार दुकान चांदनीचौक में खोल ली थी। नवाब मिलनसार, खुश-अखलाक, जिन्दादिल, और अदब-कायदे से चाक- चौबन्द आदमी था। इसके अतिरिक्त वह अब दिल्ली की म्युनिसिपिल कमेटी का एक लाभदायक गुप्त साधन बन गया था, अतः बहुत गर्जमंद उसके तलुए सहलाते थे। और नवाब से जो एक बार मिल लेता था वहं सदा के लिए उसका दोस्त हो जाता था। नवाब में एक ज़बर्दस्त बात यह थी कि वह किसी आदमी के रुपाब में नहीं आता था। उसकी नम्रता में दबंगता थी। विनय में शालीनता थी। इन सब बातों के ऊपर वह बातों का धनी और वायदे का पक्का था। निस्संदेह जुगनू को नवाब की आमदनी की अपेक्षा अठगुनी आय हुई थी। पर नवाब के सत्परामर्श से जुगनू अपनी इतनी बड़ी आय को यत्न से छिपा रहा था। यद्यपि उसके खर्चे अब बहुत बढ़ गए थे, पर वह प्रकट में बहुत सोच- समझकर खर्च करता था। चुनाव पर उसका घेला भी खर्च नहीं हो रहा था। लाला फकीरचन्द के दिए दो लाख रुपयों की विद्यासागर निर्द्वन्द्व होली जला रहा था। इस तरह, नवाब और जुगनू की दोस्ती सोने में सुहागे का मेल था । दोनों दोनों से पूरा लाभ उठा रहे थे । और दोनों दोनों से खुश थे । इधर नवाब ने अपने कारोबार में अधिक दिलचस्पी प्रकट की थी और वह अब काम होने पर जुगनू से मिलता था। जुगनू भी उससे काम से ही मुलाकात करता था। कभी-कभी तो महीनों मुलाकात नहीं होती थी--वास्तव में यह बात दूरदर्शितापूर्ण थी-और दोनों ही के लिए हितकर थी। यह नवाब ही के बलबूते की बात थी कि उसने जुगनू की असंयत और असंस्कृत वृत्ति को संयत और नियंत्रित रखा था। नवाब का यह सावधान
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