२५६ बगुला के पंख । 'हे भगवान, तुम न जाने मुझसे क्या कराने जा रहे हो।' 'देखो पद्मा, विदेश जाकर मैंने अच्छी तरह समझा है। स्त्रियां केवल घरेलू काम करने की ही योग्यता रखती हैं। पढ़ने-लिखने पर भी उनमें कोई खास अंतर नहीं आता। राजनीति और आर्थिक ताने-बाने बड़े विकट हैं । अच्छे-अच्छे इसमें उलझ जाते हैं । ये काम औरतों के बूते के नहीं हैं। इसके लिए ज़रा आदमी में इस्पात की सख्ती चाहिए। पर तुम्हें कोई खास ज़िम्मेदारी का काम नहीं दूंगा । काम तो तुम्हें नाम मात्र को ही करना होगा। पर यह बात है कि भेद को अवश्य गुप्त रखना होगा। मंजूर हो तो यह फार्म है । हस्ताक्षर कर दो।' पद्मा ने फार्म पर हस्ताक्षर कर दिए। वह जुगनू की पी० ए० बन गई। योग्य महिला थी ; सुशिक्षिता और शालीन । उसने अनायास ही सब काम संभाल लिया। उसके कारण जुगनू की अयोग्यता पर भी काफी परदा पड़ गया। वह सव फाइलों पर जुगनू की ओर से नोट लिखती । क्या नोट लिखना चाहिए यह पी० एस० उसे बता देता था। उसे भी पद्मा की योग्यता पर विश्वास हो गया। वह एक अधेड़ उम्र का मद्रासी आई० सी० एस० था । भद्रपुरुष था । पद्मा को भी उससे बहुत सहारा मिला। पहली तारीख को जुगनू को लाला फकीरचन्द का कोरा चैक मिल गया। चैक पर न किसी पानेवाले का नाम था, न कोई रकम थी। लाला फकीरचन्द के दस्तखत थे। चैक को पाकर जुगनू का कलेजा धड़कने लगा। उसपर कितनी रकम भरी जाए तथा किस नाम से वह रकम कैश की जाए, वह यही बात सोचने लगा। पर कुछ भी निर्णय न कर सका। चैक उसने जेब में डाल लिया और जब शाम को घर लौटा तो वही चैक उसके दिमाग में बसा था। इस समय लाखों रुपया उसके पास था। पर इससे क्या ! उसे अभी और भी लाखों चाहिए । अब वह हज़ारों की बात ही नहीं सोचता था। वह सोच रहा था, कितनी रकम लिखू–एक लाख, दो लाख, पांच लाख ??? वह हिसाब लगाने लगा। इस माह में उसकी सहायता से फकीरचन्द ने कितना ब-१६
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