बगुला के पंख २५७ मुनाफा कमाया होगा? वह निर्णय न कर सका। रात को उसे नींद नहीं आई । अकस्मात् एक अनोखा विचार बिजली की भांति उसके मस्तिष्क में कौंध गया। वह तेजी से बिस्तर से उठ खड़ा हुआ । चैक निकालकर उसने टेबल पर अपने सामने रख लिया। एक नया विचार उसके दिमाग में तूफान पैदा कर रहा था। उसने घड़ी पर नज़र डाली। दो बज रहे थे। दुनिया सो रही थी । आसमान असंख्य तारों से भरा था । वह बड़ी देर तक एक तेज़ टिमटिमाते तारे को ताकता रहा । अन्ततः उसने एक निर्णय कर लिया। कलम उठाकर उसने चैक पर पानेवाले के स्थान पर लिखा-जगनपरसाद, और रकम की जगह पर लिख दिया- शारदा। देर तक वह उन दोनों नामों को देखता रहा । जैसे वे अक्षर बातें कर रहे हों। चिरकाल से मन में संजोई शारदा की अछूते कौमार्य के माधुर्य से ओत- प्रोत मूर्ति जैसे उस अर्धरात्रि में सजीव होकर उसके सामने आ खड़ी हुई है। उसके रक्त की प्रत्येक बूंद आनन्द से नाचने लगी । और शरीर कांपने लगा। उसके होंठों पर एक मुस्कान आई और वह फिर सहन में आकर उस दूर टिमटिमाते तारे की ओर टकटकी बांधकर देखता रहा-बड़ी देर तक । चैक वापस फकीरचन्द के पास भेज दिया गया। रकम की जगह शारदा का नाम पढ़कर लाला फकीरचन्द बड़े असमंजस में पड़ गए। बड़ी विचित्र बात है। क्या मतलब इस तरह चैक पर यह नाम लिखने का ! हठात् उन्हें ध्यान हो आया-शारदा तो डाक्टर खन्ना की लड़की है । मुंशी क्या उसे चाहता है ? फकीरचन्द ने झटपट कपड़े पहने और जुगनू की कोठी में आ बरामद हुए। जुगनू उनकी प्रतीक्षा ही कर रहा था। 'हां साहब, यह कैसी रकम है ?' फकीरचन्द ने बैठते हुए और जेब से चैक निकालते हुए कहा। 'वह रकम है, जो वसूल करनी है।'
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