२६० बगुला के पंख हूं डाक्टर साहब । नहीं लड़कियों की बिरादरी में ही क्या कमी है । फिर जगन जैसा लायक लड़का, चिराग लेकर ढूंढ़िए तो मिलना मुश्किल। एक-एक लाख का दहेज लोग देने को तैयार हैं डाक्टर साहब, अब आपसे क्या परदा।' 'पर भई, मेरे पास तो लाख रुपया है नहीं।' 'आपकी बिटिया ही लाख-करोड़ की है । फिर आप खुद हीरा हैं हीरा । लाख रुपया तो आपकी हस्ती पर न्यौछावर है डाक्टर साहब ।' 'वह आपकी कृपा और कद्रदानी है । अच्छा, मैं शारदा की मां को बुलाता हूं।' मिसेज़ खन्ना आईं। बहुत बातचीत हुई । लाला फकीरचन्द का बात करने का ढंग प्रभावशाली था । वे स्वयं भी एक प्रभावशाली करोड़पति व्यापारी थे । एम० पी० थे । डाक्टर खन्ना और उनकी पत्नी पर उनका प्रभाव था। जुगनू सुन्दर, स्वस्थ, सभ्य, शिष्ट तरुण था। इस समय मिनिस्टर के सर्वोच्च पद पर था। यद्यपि उसके पास लाखों की सम्पत्ति थी, परन्तु शायद इस सम्बन्ध में डाक्टर खन्ना बहुत कम जानते थे । परन्तु जो कमी थी, वह इस बात ने पूरी कर दी थी कि वह लाला फकीरचन्द का भांजा है । लाला फकीरचन्द इस समय दिल्ली के अग्रवाल वैश्यों की नाक बने हुए थे। ये सब बातें ऐसी न थीं जो एक हिंदू बेटी के माता-पिता पर प्रभाव न डालें। लाला फकीरचन्द मनोविज्ञान के भी, मालूम होता है, ज्ञाता थे । उन्हें लड़की के पिता की असहायावस्था का ज्ञान था। उसका उन्होंने ऐसा चित्र खींचा और ऐसा वातावरण पैदा किया कि या तो अभी, या फिर कभी नहीं । थोड़ा परामर्श डाक्टर ने अपनी पत्नी से किया । प्रश्न जाति-बिरादरी का आया । इसपर श्रीमती ने साहसपूर्वक कहा, 'हम खत्री हैं, आप अग्रवाल हैं । हममें-आपमें क्या अन्तर है । रही शारदा की पसन्द की बात, सो वह विरोध न करेगी।' फलतः खन्ना-दम्पति ने मौन सम्मति प्रदान की। लाला फकीरचन्द इसी अवसर की ताक में थे, उन्होंने कहा, 'जरा बिटिया को बुलाइए न डाक्टर साहब, मैंने तो काफी दिन से उसे देखा ही नहीं।' मालूम होता है कि शारदा भी कहीं निकट बात सुन रही थी। माता के निकट बुलाने पर वह आई और लाला फकीरचन्द को नमस्कार करके उन्हींके पास बैठ गई । लाला फकीरचन्द ने जेब से जड़ाऊ हीरे के दो कीमती कड़े निकाल उसके हाथों में पहना दिए। शारदा की अांखें नीची थीं, और खन्ना-दम्पति की आंखों में सन्तोष और प्रसन्नता खेल रही थी।
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