उस दिन पिकनिक की शाम को जुगनू ने जो शारदा के कौमार्य को एक धक्का दिया, सो उसने शारदा के सोए हुए यौवन को जगा दिया था । निस्संदेह उसे उस समय की जुगनू की हरकत और प्रणय-निवेदन असह्य-सा लगा था, परन्तु ज्यों-ज्यों वह उस घटना पर विचार करती गई, उसकी चेतना में यौवन का जागरण होता गया, और वह उस याचना के माधुर्य में प्रविष्ट होती गई। इसके बाद बहुत बार अनुकूल-प्रतिकूल भाव-विभाव आए-गए। जुगनू से मिलने की एक प्रच्छन्न अभिलाषा उसके मन में उदय होती गई । पर यह उस अभिलाषा से सर्वथा भिन्न थी, जो अब तक जुगनू के लिए उसके मन में थी। इस अभिलाषा से न किसी विचार का, न रस का, न काव्य' का, न कला का सम्बन्ध था, वह इस अभिलाषा को अपने शरीर की एक भूख के रूप में अनुभव कर रही थी। परन्तु उस दिन के बाद जुगनू उसके सामने आया ही नहीं, पर शारदा की सम्पूर्ण चेतना उसीपर केन्द्रित थी। वह एम० पी० बना । उसने सोचा, पापा ने पहले उसको दावत दी थी, जब वह म्युनिसिपल अधिकारी बना था ; अब क्यों नहीं दी ? फिर वह विदेश गया, मिनिस्टर बना, पर खन्ना ने उसे नहीं बुलाया, दावत नहीं दी। केवल एक-दो बार उससे मिल अवश्य पाए । इन सब बातों से न जाने क्यों उसे अवसाद-सा प्रतीत हुअा। पर वह इस सम्बन्ध में कुछ कह न सकी । इसी समय उसके विवाह की बातें उठीं । अनेक लड़कों की चर्चा हुई। उनके गुण- दोष का विवेचन हुआ। शारदा ने मनोयोग से वह सब सुना। हर बार जुगनू से उसने उनकी तुलना की । और आज अकस्मात् जो ये कड़े उसके हाथों में पड़ गए तो उसे ऐसा लगा कि जैसे जुगनू ने अपने जलते हुए हाथों में उसके हाथ जकड़ लिए हैं, और कह रहा है-शारदा, मैं तुझे प्यार करता हूं। 4 अकस्मात् ही एक बवंडर उठ खड़ा हुआ । पार्लियामैंट में वाणिज्यमन्त्रालय के सम्बन्ध में एक विवाद उठ खड़ा हुआ । जुगनू नहीं जानता था कि उसके
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