२६८ बगुला के पंख न था। सारे मिनिस्टर वहां हाज़िर थे। और भी उच्चपदस्थ थे। वे पूछ रहे थे, 'यह माजरा क्या है, क्या मुंशी जगनप्रसाद की शादी नहीं हो रही है ?' परन्तु सभी पूछनेवाले थे, जवाब देनेवाला कोई न था । डाक्टर खन्ना कन्यादान कर रहे थे, और ब्राह्मण जल्दी-जल्दी वेदमन्त्र पढ़ रहे थे। उपसंहार जुगनू रातोंरात दिल्ली से भाग गया। किसीको उसका फिर कोई पता न लगा। उसके पास काफी रुपया था, उसे वह साथ ले गया। पद्मा को यद्यपि इन बातों का पता नहीं लगा, जाती बार उसने पद्मा को साथ ले जाना चाहा । पर उसने इन्कार कर दिया। शारदा से विवाह की बात सुनकर उसे आघात लगा था। अब इस तरह पलायन से उसे आश्चर्य हो रहा था । वह बुद्धिमती थी, उसने विवेक से काम लिया। नवाब अपना धन्धा चलाता रहा। लाला फकीरचन्द ने दौड़-धूप करके इस मामले को तूल न देने के लिए रातों- रात समाचारपत्रों से समझौता कर लिया था। पर उन्होंने इतना अवश्य छापा-वाणिज्यमन्त्री विवाह-वेदी पर से गायब । उनका कोई पता नहीं । डाक्टर खन्ना ने घसीटा का मुंह रुपयों से बन्द कर दिया और उसके सास- ससुर को, जो उसी घर के भंगी थे, समझा-बुझाकर बात पर परदा डाल दिया। विवाह के तत्काल बाद परशुराम देहात अपने घर चले गए। वहां से उन्होंने सब हाल खुलासा शारदा को लिख दिया। और यह भी लिखा, 'उस समय जो कुछ मैंने किया, वही एक भले आदमी को करना उचित था, परन्तु मैं तुमपर किसी प्रकार के अधिकार का दावा नहीं रखता।' सब बात जानकर शारदा बहुत मर्माहत हुई। पर वह बुद्धिमती लड़की थी। उसने केवल एक शब्द पत्र में परशुराम को लिखा, 'प्रायो।' -
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