बगुला के पंख २६७ भांजे हो भैया, देखना इन्कार न करना।' फकीरचन्द ने परशुराम के पैर पकड़ लिए। परशुराम ने कहा, 'सोचने- विचारने का समय तो अब है नहीं। मैं ब्राह्मण हूं, आपका प्रस्ताव स्वीकार करता हूं।' फकीरचन्द ने घसीटा से कहा, 'चुपचाप यहीं बैठा रह, सौ रुपये इनाम दूंगा तुझे।' उन्होंने कोठरी को ताला लगाया और डाक्टर से कहा, 'डाक्टर साहब, दूल्हे को साथ ले जाकर द्वाराचार करो। मैं तब तक उस भंगी के बच्चे से निबटता हूं।' वह तेज़ी से वहां से चल दिए। ९० जुगनू को भागने की राह नहीं मिल रही थी। जिस कार में वह बैठा था वह फकीरचन्द की ही थी। फकीरचन्द ने पास पहुंचकर कहा, 'उतरो।' जुगनू मोटर से नीचे उतरा, नवाब भी उतरा। लाला फकीरचन्द घुमाते- फिराते उसे पिछले द्वार पर ले गए। वहां जाकर कहा, 'भंगी के बच्चे, तेरी गैरत और औकात ही क्या है, पर जा, यदि कुछ भी शर्म हो तो अपना मुंह किसीको मत दिखाना, वरना ज़िन्दा न रहने पाएगा।' जुगनू बेंत से पिटे कुत्ते की भांति नवाब के साथ चला गया । लाला फकीरचन्द तेजी से लौटे। दो विश्वस्त आदमी कोठरी के द्वार पर पहरे पर तैनात किए। द्वाराचार हो रहा था, पर जानकार स्त्री-पुरुष जुगनू के स्थान पर परशुराम को देखकर हैरान थे। डा० खन्ना ने संक्षेप में पत्नी से इतना ही कहा था, 'शारदा की मां, ज़रा चुप रहना, गड़बड़ी न करना। बड़ी ही बुरी बात हुई है, बस समझना इज्जत बच गई । परशुराम से विवाह होगा।' शारदा एकदम इस परिवर्तन से घबरा गई थी। डाक्टर ने उससे इतना ही कहा, 'बेटी, मैं बाप हूं, तेरा सबसे बड़ा हितैषी। बस, यही समझकर चुप रह । और बात पीछे होगी।' लेकिन फिर भी चर्चा फैल गई । जुगनू कोई अपरिचित और साधारण पुरुष
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