पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/३७

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बगुला के पंख एकाएक ही, जैसे वध होते हुए पशु का स्वर होता है, उसी स्वर में कहा, 'प्रियतम, मैं तुम्हारी हूं--केवल तुम्हारी, केवल तुम्हारी ।' उसने पति के वक्ष में सिर छिपा लिया। शोभाराम के पास उत्तर न था। उसके हाथ कांप रहे थे। उसने अपने आलिंगन-पाश में पत्नी को बांध लिया । मुहूर्त भर के लिए जैसे उसकी सारी ही चेतना लुप्त हो गई। १० उस दिन जुगनू बहुत देर बाद घर आया। दफ्तर में उसे आज बहुत काम करना पड़ा। वकिंग कमेटी की मीटिंग भी आज ही थी। अतः इन सबसे फारिग होते न होते आठ बज गए। अब यहां से वह सीधा खन्ना साहब के बंगले पर पहुंचा । डाक्टर खन्ना घर पर न थे। विजिट पर कहीं देहात में गए थे। बहुत रात वीते उनके आने की बात थी । शारदा की ममी की तबियत खराब थी। वह आज बाहर निकली ही नहीं। शारदा अकेली लान में अपने अलसेशियन कुत्ते से खेल रही । उसके हाथ में एक पुस्तक थी। जुगनू ने फुर्ती से लाल गुलाव का एक बड़ा-सा फूल वहीं से तोड़ लिया और हंसते-हंसते उसे आगे बढ़ाते हुए कहा, 'देखो, कितना सुन्दर फूल है यह ।' 'तुम बड़े खराब आदमी हो मुंशी, तुमने इतनी देर क्यों कर दी ?' शारदा ने नकली गुस्से से मुंह फुलाकर कहा। उसकी आंखों से एक चमक निकल रही थी, जो उसकी आन्तरिक प्रसन्नता की द्योतक थी। जुगनू ने नम्र होकर कहा, 'बहुत अफसोस है, मुझे माफ कर दो मिस शारदा, आज दफ्तर का इतना काम था कि कचूमर निकल गया।' 'नहीं, नहीं, तुम मुझे परेशान करना चाहते हो। खैर, लामो वह गज़ल, लिख लाए ?' 'लो, यह है । इसके साथ दो गज़लें और हैं।' शारदा ने खुश होकर कागज़ हाथ में ले लिया और कहा, 'यह तुमने नई शायरी की है ?'