पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/४५

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बंगुला के पंख ४३ की ओर अांख उठाकर देखा तो पद्मादेवी के रूप और शृगार ने उसकी आंखों को चकाचौंध कर दिया। वह एकटक उसे देखता ही रह गया। पद्मादेवी ने फिर उसकी आंखों में वही भूख देबी जिसे कई बार देख चुकी थी, जो उसे असंयत कर देती थी। उन अांखों की लालसा ने उसका मुंह लाली से रंग दिया। वह तेजी से वहां से चल दी । जुगनू जल्दी से बत्ती बुझाकर बिना कपड़े बदले ही पलंग पर पड़ गया। उसे इस समय ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उसके शरीर में भट्टियां सुलग रही हों। बहुत देर वह बिस्तर पर छटपटाता रहा। फिर न जाने कब उसकी आंख लग गई। १२ दूसरे दिन जब जुगनू सोकर उठा तो उसका मन आत्मग्लानि से भरा हुआ था। वह चाहता था कि चुपचाप वह घर से निकल जाए और किसीको मुंह न" दिखाए । परन्तु ज्योंही वह कपड़े पहनकर जाने लगा कि शोभाराम ने उसे पुकार लिया । शोभाराम के पास उसे जाना पड़ा। शोभाराम ने उससे इधर- उधर की बहुत-सी बातें कीं । आफिस के हाल पूछे, इतनी देर तक कहां रहे यह भी खोद-खोदकर पूछा। इस समय जुगनू की दशा चोर जैसी हो रही थी। वह कुछ झूटी, कुछ सच्ची बातें बक रहा था। निस्सन्देह उसने शारदा के यहां जाने की बात नहीं बताई । तबियत खराब होने का बहाना करके उसने नाश्ता भी नहीं किया । और 'आफिस में आज काम बहुत है' यह कहकर वह वहां से चल दिया। उसके जाने पर शोभाराम ने पद्मादेवी से पूछा, 'क्या बात है, जगन आज कुछ उखड़ा-उखड़ा-सा हो रहा था ? तुमने कुछ कहा था क्या ?' 'नहीं, कुछ भी नहीं।' शोभाराम कुछ देर चुपचाप सोचता रहा । यह शुद्ध हृदय' का तरुण अपने मन में कोई कुत्सा रखता ही न था। इसीसे वह और-और बातें करने लगा। जुगनू का मन आज आफिस में भी नहीं लगा । वह अब यद्यपि पक्की तौर