पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/५१

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बगुला के पंख ४६ हुई आपसे मिलकर । क्या आप नये ही दिल्ली में आए हैं ?' 'जी नहीं, लेकिन मैं यहां थोड़े ही दिन से हूं। मैं जिला कांग्रेस कमेटी का ज्वाइंट सेक्रेटरी हूं।' 'प्रोफ्को, तब तो आप हमारे माई-बाप ही हैं। अब यह तो कांग्रेसी राज्य ही है।' वह फिर भद्दे ढंग से हंस दिया। बैरा तीन पैग व्हिस्की, सोडे की बोतल, गिलास और बर्फ तथा नमकीन काजू रख गया। क्षण भर सरदार ने प्रतीक्षा की कि मुंशी पैग ढाले । पर मुंशी पीना- पिलाना नहीं जानता था । यह देखकर सरदार जोगेन्द्रसिंह स्वयं गिलास में बर्फ डालने लगे। इसपर सेठजी ने कहा, 'वाह सरकार, आप ठहरिए। यह काम तो मेरा है।' सेठ ने पैग तैयार किए । तीनों आदमी व्हिस्की की चुस्कियां लेने और काजू गटकने लगे । मुंशी ने भी साथियों का अनुकरण किया। सेठ और मजिस्ट्रेट बातें करते जाते थे। जुगनू गुपचुप सुन रहा था । शराब उसे कड़वी लग रही थी और बातचीत वह कुछ समझ नहीं पा रहा था। सेठजी ने हंसते हुए कहा, 'यह क्या मुंशी, दवा पी रहे हो या शगल कर रहे हो ?' सरदार ने कहा, 'मुंशी कभी पीते नहीं। आज फंस गए हैं।' 'अरे यार, तो तुम हमारी सोहबत में नहीं रह सकते ।' पैग खाली हो चुके थे। सेठ ने दूसरे तीन पैग लाने का आर्डर दिया। जुगनू ने कहा, 'मैं तो माफी चाहता हूं। अब और न पी सकूँगा।' 'देखता हूं कैसे नहीं पी सकोगे । कायस्थ-बच्चे हो, कोई हंसी-खेल नहीं।' पैग आ गए और जुगनू ने कायस्थ-बच्चा होना अप्रमाणित न हो जाए, इसलिए चुपचाप उसे भी गले से उतार दिया। शराब अब मस्तिष्क में अपना असर कर रही थी। उसे अपना शरीर कुछ अधर में झूलता-सा लग रहा था। एक सुखद-सी असावधानता वह अपने मस्तिष्क में अनुभव कर रहा था। उसे प्रतीत हो रहा था कि वह किसी स्वप्न- लोक में आ गया है। सेठ ने मजिस्ट्रेट से पूछा, 'अब सरकार की सवारी किधर जाएगी?' ,