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पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/६१

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बगुला के पंख ५६ में जाते, उसकी ओर से दो-चार शब्द कहते । उन्होंने बड़ी कठिनाई से उसे दो- चार वाक्य' याद करा दिए थे। जब भी कोई समारोह होता, वह लाज और संकोच से सिकुड़ा-सा हाथ जोड़कर अत्यन्त गम्भीरता से कहता, 'मित्रो, आपकी कृपा का आभारी हूं। मैंने प्रतिज्ञा की है कि मैं भाषण नहीं दूंगा। मैं जो चाहता हूं, वह कहकर नहीं, करके दिखाना चाहता हूं।' इतनी-सी बात पर तालियों की गड़गड़ाहट से पार्टियां गूंज उठतीं। लोग उठकर उससे हाथ मिलाने और परिचय प्राप्त करने को आतुर हो उठते । वह इन सब बातों से थका हुअा, परेशान-सा घर लौटता। बहुत देर तक उसे नींद नहीं पाती । वह अपने भूत-भविष्य पर आधी-आधी रात तक विचार करता रहता। परन्तु अब तो उसके बोलने की बारी ही थी। कमेटी की बैठकें होने लगीं। वह कांग्रेस ग्रुप का लीडर था । धीरे-धीरे उसने अपने पद की महत्ता को समझ लिया। दूसरों को वह जोर-शोर से भाषण देते सुनता, उसके मन में होता कि वह भी वैसे ही धड़ल्ले से बोले । पर खड़े होते ही उसका दिल धड़कने लगता था। अभी नये चुनाव की बधाइयां चल रही थीं कि दिवाली की धूमधाम ने जुगनू को धर दबोचा। चारों ओर से मिठाइयों के थाल और उपहार चले आ रहे थे। आज उसे प्रथम बार ही अनुभव हुआ कि उसका न कोई परिवार है, न उसका कोई पारिवारिक जीवन है। न वह सच्चे अर्थों में नागरिक है। वास्तव में वह समाज-बहिष्कृत एकाकी पुरुष है, परन्तु आज उसे अनधिकृत रूप में नगर-पिता होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है और तत्काल ही जैसे उसे सभी प्रकार के नागरिक अधिकार प्राप्त हो गए हैं। वह न केवल एक सभ्य-शिष्ट नागरिक बन गया है अपितु शिष्ट नागरिकों का एक अधिष्ठाता, एक अग्रपुरुष वन गया है। इसीसे लोग उसकी जय-जयकार मनाते हैं, उसके सम्मान में दावतें देते हैं, उसे भेंट-उपहार भेजते हैं। उसे गर्व का आभास होता था। वह सोच रहा था कि वह भी यदि एक सभ्य-शिष्ट नागरिक होता, उसका एक प्रतिष्ठित परिवार होता, पत्नी होती, बच्चे होते तो आज उसका सम्पूर्ण जीवन पल्लवित हो उठता। उसके पास आए हुए सभी उपहार पद्मादेवी के पास पहुंचते थे। प्रत्येक समारोह की पूर्ति वह शोभाराम की सहायता से करता था। परन्तु दो काम