पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/७४

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७२ बगुला के पंख का ताल्लुक रखते हैं। दोस्तों से नहीं, दोस्तों के लिए हमारी जानोमाल सदके ।' 'लेकिन मेरी दोस्ती से तुम्हें क्या मिलेगा ?' 'राहत, तफरीह, नसीहत ।' 'नहीं, मैं इस वक्त जाता हूं। मुझे एक ज़रूरी काम याद आ गया है।' जुगनू तेज़ी से चल दिया। नवाब ने लपककर उसकी बांह पकड़ ली। उसने हंसकर कहा, 'तुम्हारे मुकाबले कमजोर तो हूं। मगर तुम्हें कसम है, जो जाने का नाम लो।' 'भई, अजब जिद्दी आदमी हो । कह तो चुका-मेरी जेब में इस वक्त एक घेला भी नहीं है।' 'तो क्या हुआ ? नवाब की जेब में तो है । कहीं दोस्तों में भी हिसाब-किताब होता है ? नवाब की नज़र एक खाली स्कूटर पर पड़ी। उसे इशारे से रोककर वह जुगनू को घसीटता हुआ स्कूटर पर जा बैठा । कहा, 'कनाट प्लेस ।' स्कूटर दनदनाता हुआ नई दिल्ली की चमचमाती सड़क पर दौड़ लगाने लगा। १९ कनाट प्लेस पहुंचकर पहले एक चक्कर उन्होंने बाज़ार का लगाया। बड़ी देर तक दोनों चुपचाप गुमसुम सजी-धजी दूकानों की बहार देखते रहे । फिर नवाब ने कहा, “एक बात पूछू ?' 'पूछो।' 'मैं अब तुम्हें 'तुम' कहकर पुकारूं तो नाराज़ तो न होगे ?' 'इससे क्या होगा ?' 'दोस्ती पर पक्की मुहर लग जाएगी।' जुगनू हंस पड़ा । उसने कहा, 'बड़े मजेदार आदमी हो, अब तुम्हारी दोस्ती तो मैं छोड़ सकता नहीं।'