पृष्ठ:बगुला के पंख.djvu/७५

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बगुला के पंख 93 'शुक्रिया। 'अब दोस्ती में भी शुक्रिया ?' 'गलती हुई । हां, यह तो कहो, अंग्रेज़ी समझ लेते हो ?' 'क्यों ? क्या बात है ?' 'दोस्त, प्लाजा में एक बढ़िया-सी अंग्रेज़ी पिक्चर आई है। मैं तो खाक-धूल कुछ समझ पाता नहीं, पर अंग्रेज़ी पिक्चर देखने का मुझे बेहद शौक है । कोई मशहूर पिक्चर मैं चूकता नहीं । चलकर वह पिक्चर देखी जाए। वक्त हो रहा 'कौन-सी पिक्चर ?' 'हैलेन ऑफ ट्राय' ।' 'जैसी मर्जी, चलो। अब तो मैं तुम्हारी दुम से बंधा हूं।' जुगनू ने हंसकर कहा। 'इससे मेरी दुम की रौनक कितनी बढ़ गई है, यह भी तो देखो !' नवाब ने ठहाका भरा। दोनों दोस्तों ने लगभग मौन होकर ही पिक्चर देखी । विफल प्रेम का वह प्रभावशाली चित्र जुगनू के रक्त पर छा गया। आज जैसा उसका मन हो रहा था, वह बातचीत की स्थिति में ही न था । बीच-बीच में एकाध बात होती और दोनों दोस्त ध्यान से पिक्चर देखते । पिक्चर की समाप्ति पर बाहर आकर जुगनू ने कहा, 'अब ?' 'अब इधर आयो।' वह वैगर रैस्टोरां की ओर बढ़ा। जुगनू ने बाधा देकर कहा, 'यार, बहुत खर्च कर रहे हो, यह ठीक नहीं है ।' 'चले आयो दोस्त, भूख के मारे मेरे पेट में चूहे लोट रहे हैं।' जुगनू भी वास्तव में भूखा था । सुबह से उसने कुछ खाया न था। दोनों ने डटकर नाश्ता किया और टहलते हुए जंतर-मंतर में घुसकर लान पर जा बैठे। नवाब ने सिगरेट पेश करते हुए कहा, 'यहां अब डटकर बातें होंगी।' 'किस किस्म की ?'. 'गदहपचीसी की । तुम यार अभी इसीके घेरे में हो । उम्र के लिहाज़ से मैं ज़रा आगे हूं, मगर तबियत से वही हूं । लो अब कच्चा चिट्ठा खोल डालो।'